नई दिल्ली। आरजी कर मेडिकल कॉलेज के एक इंटर्न ने बताया, ‘दूसरे साल तक मेरे नंबर ठीक थे। सब कुछ अच्छा चल रहा था। फिर मैंने हॉस्टल में कॉमन रूम की मांग को लेकर एक विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इसके बाद मुझे तीसरे साल की परीक्षा में फेल कर दिया गया, हॉस्टल से निकाल दिया गया और सोशली इतना अलग-थलग कर दिया गया कि मैंने खुद को खत्म करने की कोशिश की। अपने साइकेट्री (मनोरोग) वार्ड के एडमिशन पेपर आत्महत्या के प्रयास के दौरान के ट्रीटमेंट कार्ड और अपनी कलाई पर पड़े निशान को दिखाते हुए इंटर्न ने कहा कि वह अभी भी अपना नाम और चेहरा उजागर करने से डरता है। उसने कहा, ‘संदीप घोष को भले ही प्रिंसिपल पद से हटा दिया गया हो, लेकिन उनके समर्थक नजर रख रहे हैं। अगर उन्हें पता चल गया कि मैंने बात की है तो वे मेरी क्लियरेंस रुकवा सकते हैं और मेरा करियर बर्बाद कर सकते हैं। लेकिन हम कब तक इस डर में जी सकते हैं? एक अन्य मेडिकल स्टूडेंट ने कहा, ‘दीदी (पीड़िता) के साथ जो हुआ वह हम में से किसी के साथ भी हो सकता था। आरजी कर में संदीप घोष को प्रिंसिपल बनाए रखने का समर्थन करने वालों को ही गोल्ड मेडल या हाउस स्टाफ की भूमिकाएं मिलीं। जिस किसी ने भी थोड़ी भी आवाज उठाई, उसे काम के अनुचित घंटे दिए गए और हर तरह के उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा।मेडिकल स्टूडेंट्स का कहना है कि 9 अगस्त को रेप और मर्डर के बाद संदीप घोष के करीबी लोग छात्रों को विरोध प्रदर्शन शुरू करने से रोकने की कोशिश कर रहे थे। चेस्ट मेडिसीन विभाग के स्टूडेंट ने कहा, ‘ये सीनियर्स आए और उन्होंने फर्स्ट और सेकंड ईयर के जूनियर्स से कहा कि विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की कोई जरूरत नहीं है’। यह पूछे जाने पर कि उनके अनुसार संदीप घोष का प्रिंसिपल बने रहना क्यों जरूरी था, तो ऑर्थोपेडिक इंटर्न ने कहा, ‘जाहिर है कि वो कुछ छिपाने की कोशिश कर रहे थे। हम छात्र हैं, इसलिए नहीं जानते कि यह ड्रग रैकेट था या सेक्स रैकेट या कुछ और। सीबीआई को हमें यह बताना चाहिए। लेकिन जिस तरह से उनके गुट ने 2021 में एक नए प्रिंसिपल को कार्यभार नहीं संभालने दिया और फिर विरोध करने वाले किसी को भी निशाना बनाया, इससे पता चलता है कि कुछ न कुछ तो छिपाना था।
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