नई दिल्ली । हिमालय पर्वतारोहण संस्थान (दार्जिलिंग) के बैनर तले भारतीय पर्वतारोहियों ने स्वतंत्रता के 78 वर्ष पूरे होने पर अफ्रीकी महाद्वीप के किलिमंजारो पर्वत पर में 7,800 वर्गफुट भारतीय तिरंगा फहराकर एक नई मिशाल कायम की। माउंट किलिमंजारो पूर्वी अफ्रीका में तंजानिया के उत्तर-पूर्व में भूमध्य रेखा पर केन्याई सीमा के दक्षिण में किलिमंजारो राष्ट्रीय उद्यान में स्थित है। इसे अफ्रीका की छत के नाम से भी जाना जाता है। रक्षा मंत्रालय के दिव्यांगजन अभियान दल ने दिव्यांग उदय कुमार के साथ 19,341 फुट ऊंचे माउंट किलिमंजारो शिखर पर पहुंचकर 7800 वर्गफुट का तिरंगा फहराने के बाद चोटी से संदेश भेजा -जयहिंद। दिव्यांगजन अभियान में ग्रुप कैप्टन जय किशन के नेतृत्व में कंचनजंगा राष्ट्रीय उद्यान से अफ्रीकी महाद्वीप की सबसे ऊंची चोटी किलिमंजारो तक के अभियानकर्ताओं ने चार अगस्त को दिव्यांग उदय कुमार सहित कैप्टन श्रुति, महेंद्र कुमार यादव, पावेल शर्मा, और मिस सुलक्षणा तमांग के साथ बेस कैंप के लिए चढ़ाई शुरू की थी। अभियान दल ने सात अगस्त को 15,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित किबो हट पहुंचने पर 7,800 वर्ग फुट का विशाल भारतीय राष्ट्रीय ध्वज प्रदर्शित किया। एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि यह महत्वपूर्ण कार्य रस्सियों, जालों और लंगरों का उपयोग करके पूरा किया गया, जो गर्व और देशभक्ति का एक महत्वपूर्ण क्षण है। मौसम की नजाकत और सभी सदस्यों की चिकित्सा फिटनेस को ध्यान में रखते हुए 08 अगस्त के शुरुआती घंटों में सुबह 0300 बजे टीम ने उहुरू शिखर पर अपनी अंतिम चढ़ाई शुरू की। दुर्गम इलाके में 10 घंटे की कठिन चढ़ाई के बाद अभियान दल ने अपना लक्ष्य हासिल किया। अभियान दल 1300 बजे 19,341 फुट ऊंचे उहुरू शिखर के शिखर पर पहुंचे और एक बार फिर किलिमंजारो के ऊपर 7,800 वर्ग फुट का तिरंगा फहराया। ग्रुप कैप्टन जय किशन ने इस अभियान को एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया, विशेष रूप से दिव्यांग पर्वतारोही उदय कुमार के साहस और द्दढ़ संकल्प की दाद दी। उदय ने बैसाखी का उपयोग करके सफलतापूर्वक पर्वतारोहण का प्रयास पूरा किया जो पर्वतारोहण के इतिहास में यह पहला क्षण था। रक्षा मंत्रालय के तहत एचएमआई, दुनिया में एक प्रमुख पर्वतारोहण संस्थान की स्थापना 04 नवंबर, 1954 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में स्वर्गीय तेनजिंग नोर्गे शेरपा और सर एडमंड हिलेरी द्वारा माउंट एवरेस्ट को फतह करने की स्मृति में की गई थी।
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