400 साल पुरानी, रोआम की कहानी | धनबाद जिले का तोपचांची प्रखंड। इसके एक गांव हैं रोआम। यहां चार सौ वर्षों से माँ दुर्गा की पूजा होती आ रही है। मंदिर की स्थापना भीखी तिवारी के पुत्र गजाधर तिवारी ने करायी थी। भीखी तिवारी की नोवीं पीढ़ी के वंशज खोरठा गीतकार विनय तिवारी ने बताया कि यहां कतरास राजघराने से पहले से पूजा हो रही है।
ब्राह्मणों को दान में मिला गावँ है रोआम
उस समय रोआम गावँ ब्रह्मोतर (ब्राह्मणों को दान में मिला गावँ) होने के कारण राजघराने के लोग इस गावँ में पावँ नहीं रखते थे. चार सौ साल पहले माँ दुर्गा जी के प्रतिमा को लेकर रोआम के ब्राह्मण परिवार के लोग कतरासगढ़ स्थित राजा तालाब में देवी की प्रतिमा विसर्जन करने गये तो माता के दर्शन को राजमाता सपरिवार वहां पहुंची. उस वक्त से आज तक राजघराने से माँ दुर्गा मंदिर को नवपत्रिका का कपड़ा व आर्थिक मदद की जाती है।
क्या कहते हैं पुजारी
मंदिर के पुजारी पंडित भास्कर पांडेय ने बताया कि यहां पहली से दशमी तक माता की पूजा होती है. दशकों से चली आ रही परम्परा के अनुसार यहाँ की लड़कियाँ अपने ससुराल से माँ का ज्योत जलाने के लिए घी भेजती है.
आसपास के गांवों के लोगों का पूजा में होता है जुटान
आस पास के लोग भी पूजा में शामिल होते है. यहां बाघमारा, रामकनाली, पाण्डेयडीह, खरनी, पाथलचापरा, सिरसागढ़ा, कठराटांड़, ढांगी, चौबेडीह, रथटाँड, पाठकडीह, लेवाटांड़, धारकीरो, कांको, सहित अन्य गांवों के लोग पूजा अर्चना करने के लिए पहुँचते है.
इन लोगों की देख-रेख में होती है पूजा
अखिलचंद्र तिवारी, हरि प्रसाद तिवारी, अमूल्य रतन तिवारी, राजेन्द्र तिवारी, दीपक तिवारी, वीरेंद्र तिवारी, कृष्ण कुमार तिवारी, परेश तिवारी, मिहिर तिवारी, जितेंद्र तिवारी, प्रियतोष तिवारी, जयप्रकाश तिवारी, समीर तिवारी, साधन तिवारी, राजीव तिवारी, लालटू तिवारी, मंजीत तिवारी आदि सालों भर मंदिर की देखरेख व पूजा करते आ रहे हैं.