Chhath Puja || छठ पूजा का इतिहास बेहद प्राचीन है, और इसका उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी, जब द्रौपदी ने अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठ पूजा का आयोजन किया था।
1. परिचय
छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक अत्यंत पवित्र पर्व है, जिसे मुख्य रूप से सूर्य देव और छठी मैया की उपासना के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व विशेषकर बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल में लोकप्रिय है, और यह मुख्य रूप से सुख-शांति, समृद्धि और संतानों के कल्याण की कामना के लिए किया जाता है।
2. छठ पूजा का इतिहास
छठ पूजा का इतिहास बेहद प्राचीन है, और इसका उल्लेख कई धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माना जाता है कि इस पूजा की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी, जब द्रौपदी ने अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए छठ पूजा का आयोजन किया था। यह पर्व सूर्य उपासना का प्रतीक है और इसके पीछे कई पौराणिक कथाएँ भी जुड़ी हैं।
3. छठ पूजा कब और क्यों मनाई जाती है?
छठ पूजा मुख्यतः कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। चार दिवसीय इस पर्व में सूर्य देव को अर्घ्य देकर संतान, सुख और समृद्धि की कामना की जाती है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण माना गया है, क्योंकि इसमें सूर्य की उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है।
4. छठ पूजा की पौराणिक कथाएँ
छठ पूजा से कई पौराणिक कहानियाँ जुड़ी हैं। इनमें से एक कहानी के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी मालिनी ने संतान प्राप्ति की कामना से की थी। उनके तप से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने उन्हें संतान सुख का आशीर्वाद दिया था। इसीलिए, छठ पूजा में संतान के कल्याण का विशेष महत्व है।
5. सूर्य उपासना का महत्व
सूर्य देव को जीवन का आधार माना गया है। उनकी उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, शक्ति और स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। सूर्य देव से प्राप्त होने वाला प्रकाश और ऊर्जा हमें जीवंत बनाए रखते हैं, और छठ पूजा में उनका आभार प्रकट किया जाता है।
6. छठ पूजा के चार दिन का विस्तार
6.1 नहाय खाय (पहला दिन)
पहले दिन को ‘नहाय खाय’ कहा जाता है। इस दिन व्रती गंगा या किसी पवित्र नदी में स्नान कर सात्विक भोजन करते हैं। इस दिन की शुरुआत शुद्धता और आत्मशुद्धि से होती है।
6.2 खरना (दूसरा दिन)
दूसरे दिन को ‘खरना’ कहा जाता है। इस दिन व्रती दिनभर उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद गुड़ और चावल की खीर का भोग लगाते हैं। इसके बाद ही वे भोजन करते हैं।
6.3 संध्या अर्घ्य (तीसरा दिन)
तीसरे दिन संध्या समय व्रती सूर्य देव को जल अर्पित करते हैं, जिसे संध्या अर्घ्य कहते हैं। यह अर्घ्य पानी में खड़े होकर सूर्यास्त के समय दिया जाता है।
6.4 उषा अर्घ्य (चौथा दिन)
चौथे और अंतिम दिन को उषा अर्घ्य कहते हैं। इस दिन व्रती उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं और अपनी पूजा का समापन करते हैं। इस अर्घ्य के साथ ही व्रत समाप्त होता है।
7. छठ पूजा की तैयारी
छठ पूजा के लिए विशेष रूप से साफ-सफाई का ध्यान रखा जाता है। पूजा में इस्तेमाल होने वाले बांस के सूप, डाला, ठेकुआ, फल आदि का खास महत्व होता है। प्रसाद शुद्धता के साथ घर पर तैयार किया जाता है।
8. व्रत और नियम
छठ पूजा का व्रत सबसे कठिन माना जाता है। इस व्रत में चार दिन तक कठोर नियमों का पालन किया जाता है। व्रती को भूमि पर सोना होता है, और वे केवल सात्विक भोजन ही ग्रहण करते हैं।
9. पारंपरिक प्रसाद
छठ पूजा के प्रसाद में ठेकुआ, गन्ना, नारियल, केला, और विभिन्न प्रकार के फलों का विशेष महत्व है। ये सभी प्रसाद शुद्धता के साथ बनाए जाते हैं और इनका धार्मिक महत्व होता है।
10. छठ पूजा के गीत और भजन
छठ पूजा के दौरान गाए जाने वाले लोक गीत और भजन इस पर्व को और भी अधिक भव्य बनाते हैं। ये गीत पर्व के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को व्यक्त करते हैं और लोगों के दिलों में भक्ति का संचार करते हैं।
11. छठ पूजा में पर्यावरण का महत्व
छठ पूजा प्रकृति के साथ एक अनूठा संबंध स्थापित करता है। इस पर्व में किसी भी प्रकार की आग या प्रदूषण उत्पन्न करने वाली सामग्री का उपयोग नहीं होता, जिससे पर्यावरण को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचती।
12. छठ पूजा का समाज पर प्रभाव
छठ पूजा का समाज में एकता और सौहार्द्र को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण योगदान है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, जो विभिन्न समुदायों को एक साथ लाता है।
13. आधुनिक समय में छठ पूजा में बदलाव
समय के साथ छठ पूजा के रीति-रिवाजों में बदलाव आया है। अब लोग इसे बड़े स्तर पर मनाते हैं और इसमें तकनीकी सुविधाओं का उपयोग भी होने लगा है, जिससे यह पर्व और भी भव्य रूप ले रहा है।
छठ पूजा हमारे भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है जो न केवल आस्था बल्कि पर्यावरण के प्रति भी एक गहरा संदेश देता है। यह पर्व समाज को एकता और सौहार्द्र के बंधन में बाँधता है और हर व्यक्ति के जीवन में खुशियाँ भरता है। छठ पूजा का महत्त्व केवल धार्मिक नहीं बल्कि मानवता के कल्याण में भी है।
छठ पूजा के पारंपरिक गीत: आस्था और भक्ति की ध्वनि
छठ पूजा के गीतों का छठ महापर्व में विशेष महत्व है। इन गीतों के माध्यम से भक्त अपने आराध्य सूर्य देव और छठी मैया के प्रति अपनी श्रद्धा और आस्था को प्रकट करते हैं। छठ गीत सुनते ही एक अलग ही आध्यात्मिक वातावरण बन जाता है, जो हर भक्त के हृदय को छू लेता है।
यहाँ कुछ प्रसिद्ध छठ गीत प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जो हर साल छठ पूजा के अवसर पर गाए जाते हैं:
1. कांच ही बाँस के बहंगिया
कांच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए
कांच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए
गंगा मइया के घाट पर, हो करची बइठत जाए
कांच ही बाँस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए
यह गीत विशेष रूप से व्रती महिलाओं द्वारा गाया जाता है, जो छठ मैया के लिए अपने मन की श्रद्धा को प्रकट करता है। गीत में गंगा घाट पर व्रती की पूजा करते हुए आस्था का दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
2. उग हो सूरज देव भइल अरघ के बेर
उग हो सूरज देव, भइल अरघ के बेर
उग हो सूरज देव, भइल अरघ के बेर
उगी ना अधरात, तोरे अरघ के बेर
इस गीत में उगते हुए सूर्य देव से प्रार्थना की जाती है कि वे जल्दी उगें और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करें। छठ पूजा के दौरान इस गीत का विशेष महत्त्व होता है, जब भक्त उषा अर्घ्य अर्पित करते हैं।
3. पहिले पहिल हम कईनी छठ बरतिया
पहिले पहिल हम कईनी छठ बरतिया
करब हम अरजिया से सुनि ल, छठी मइया
पहिले पहिल हम कईनी छठ बरतिया
यह गीत पहली बार छठ व्रत रखने वाले भक्तों की भावना को व्यक्त करता है। इसमें छठी मैया से उनके व्रत को सफल बनाने और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है।
4. केलवा के पात पर उगेलन सूरजमल
केलवा के पात पर उगेलन सूरजमल
मइया तोहार अंगना में भइले उजियार हो
इस गीत में केले के पत्तों पर सूर्य की रोशनी का वर्णन है। इसे गाकर भक्त सूर्य देव और छठी मैया का आभार प्रकट करते हैं और उनके आशीर्वाद की कामना करते हैं।
5. पार करिहे छठी मइया
पार करिहे छठी मइया, हमरो नाव के पार
पार करिहे छठी मइया, हमरो नाव के पार
कठिनाई के भवसागर, हमरो नाव के पार
इस गीत में भक्त छठी मैया से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके जीवन के कठिनाइयों के सागर को पार कराएं। यह गीत भक्तों में आस्था और भक्ति की भावना को और भी बढ़ा देता है।
6. सुपव में सुथिनि के, पतरा में पइनिया के
सुपव में सुथिनि के, पतरा में पइनिया के
अरघ देले छठी मइया अंगना के छविया के
यह गीत छठ पूजा की पवित्रता और व्रती की श्रद्धा को दर्शाता है। इसमें अरघ अर्पित करने का वर्णन है और इसे सुनकर हर व्यक्ति की भक्ति जाग उठती है।
7. हो दिनानाथ मांगेला तोहरी से आसरा
हो दिनानाथ मांगेला तोहरी से आसरा
कोसी भरिके, पूजा करब हम तोहरा
इस गीत में भक्त दिनानाथ (सूर्य देव) से अपने जीवन में संबल और आश्रय की कामना करते हैं। यह गीत बहुत भावुकता और आस्था के साथ गाया जाता है।
छठ पूजा के गीतों का विशेष महत्व है। ये गीत न केवल श्रद्धालुओं की भक्ति को प्रकट करते हैं, बल्कि इस महापर्व की सुंदरता को भी बढ़ाते हैं। इन गीतों के माध्यम से छठ पूजा के दौरान एक अद्भुत माहौल बनता है, जो सभी भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव से भर देता है।