अरुण कुमार रॉय एक अदम्य मार्क्सवादी विचारक थे, जिन्होंने झारखंड आंदोलन को गति दी:आनंद महतों
DHANBAD (झारखंड) 21 जुलाई 2023 | मजदूर, शोषितों व ग्रामीणों को एकजुट करके वृहद आंदोलन करने वाले धनबाद जिले के पूर्व सांसद.अरूण कुमार राय (राय दा) का सबकुछ धनबाद और यहां के मजदूर ही थे। वे कोयले में पूरा जीवन गुजार देने के बाद भी बेदाग निकल गए। राजनीति में आने से पहले राय पीडीआइएल सिंदरी में बताैर केमिकल इंजीनियर काम करते थे।
उन्होंने मजदूरों के समस्यों का समाधान के लिए अपना राजनीतिक कैरियर एफसीआई सिंदरी से शुरू किया, इस दौरान उन्होंने पाया कि मजदूरी का समस्या एफसीआई सिंदरी में नहीं है बल्कि कोयला क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिक भी है फिर उन्होंने कोयला क्षेत्र श्रमिक के समस्या के निराकरण के लिए चल पड़े .
कोयला क्षेत्र के श्रमिकों का इस समय बहुत शोषण होता था लोकल झारखंड के श्रमिकों जंगली कहकर पुकारा जाता था। इस समय उन्होंने प्रण किया श्रमिकों को उचित हक दिलाएंगे, वहीं से मजदूर की समस्या का उत्थान करने की राजनीति शुरू हुई और वह जीवन के अंतिम यात्रा तक चालू रहा। राँय दादा को यह मानना था कि आंदोलन स्थानीय लोगों के बिना सफल नहीं हो सकता ,इसलिए उन्होंने सभी वर्ग के लोगों को एक साथ जोड़ने का काम किया। सभी वर्ग के लोगों ने उनको सम्मान दिया।
एक कम्युनिस्ट के रूप में ए.के. रॉय का जीवन एक असाधारण यात्रा थी और संभवतः सिद्धांतों, यानी लाल और हरे के एकीकरण में भूमिका निभाने वाली अनूठी यात्रा थी।
रेड मजदूरों के अधिकारों के लिए खड़ा था, जबकि ग्रीन झारखंड के आदिवासियों के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करता था जो 1970 के दशक से एक अलग राज्य के लिए लड़ रहे थे ए.के.रॉय के अनुसार, आदिवासी जन्मजात कम्युनिस्ट थे क्योंकि वे साम्राज्यवाद और पूंजीपतियों के दमनकारी शासन के खिलाफ खड़े होने की विरासत लेकर आए थे, इसलिए उन्होंने वामपंथी आंदोलन और आदिवासियों की क्षेत्रीय आकांक्षाओं के बीच एक सेतु का काम किया।
इसका एक सिंहावलोकन उनकी पुस्तकों जैसे: “योजना और क्रांति” , हिंदी में “झारखंड से लाल खंड” और अंग्रेजी में “बिरसा से लेनिन” , “न्यू दलित रिवोल्यूशन” को पढ़ने के बाद मिल सकता है।
डॉ. संदीप चटर्जी, जिन्होंने झारखंड में श्रम, पहचान और राजनीति पर डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की और वर्तमान में दिल्ली विश्वविद्यालय के अंतर्गत सत्यवती कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, कहते हैं, “एके रॉय एक जन नेता और एक विचारक थे, जो उन्हें शहीद भगत सिंह, एमके गांधी, बीआर अंबेडकर और ईएमएस नंबूदरीपाद जैसे स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्र भारत के दिग्गजों की कतार में रखता है।”
वह आगे कहते हैं कि जय भीम और लाल सलाम की अवधारणा को सबसे पहले झारखंड आंदोलन के दौरान एके रॉय ने व्यवहार में लाया था.
अखबार में उनके लेखों और स्तंभों ने कोयला-बेल्ट राजनीति को राष्ट्रीय चर्चा में ला दिया।उनके पास घर, साइकिल, कार, ज़मीन और बैंक खाता भी नहीं था। एक बार उन्हें कुछ लुटेरों ने लूट लिया, जिस पर उन्होंने कहा , “वे शायद अधिक जरूरतमंद थे।”
एके रॉय शारीरिक रूप से अब नहीं हैं, लेकिन मुख्य रूप से उनकी गूंज उन लाखों जरूरतमंदों में हमेशा बनी रहेगी, जो वर्षों तक उनके संरक्षण में फले-फूले। लोगों के मुद्दों पर उनकी समझ और निर्णय तथा साम्यवादी सिद्धांतों के भारतीयकरण को किसी और को नहीं बल्कि मुख्यधारा की वामपंथी पार्टियों (सीपीएम, सीपीआई और सीपीआईएमएल) को तत्काल याद करने की जरूरत है।