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DEOGHAR | बाबा बैद्यनाथ धाम में मां पार्वती मंदिर का इतिहास है रोचक, गठबंधन की भी है परंपरा

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DEOGHAR | 12 ज्योतिर्लिंगों में से द्वादश ज्योतिर्लिंग बाबा बैद्यनाथ मंदिर व इनके प्रांगण की सभी मंदिरों का पौराणिक महत्व है. इनमें सर्वाधिक महत्व बाबा के बाद भक्त मां पार्वती की पूजा का है.
जहां भक्त पूजा करने के लिए घंटों कतार में लग कर मां पावर्ती की पूजा करते हैं. यहां मां सती का हृदय गिरने के कारण ही बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ मां शक्ति विराजमान हैं. इस मंदिर का निर्माण पूर्व सरदार पंडा स्वर्गीय श्रीश्री रत्नपानी ओझा ने 1701 से 1710 के बीच कराया था. इस मंदिर से शिव के साथ शक्ति का महत्व है. मां पार्वती मंदिर की लंबाई लगभग 65 फीट व चौड़ाई लगभग 35 फीट है.
मां के दो रूपों के होते हैं दर्शन
मां पार्वती मंदिर के शिखर पर पहले तांबे का कलश था, बाद में बदलकर चांदी का कलश लगाया गया. कलश के ऊपर पंचशूल भी लगा है. शिखर के गुंबद के नीचे केसरिया रंग से रंगा हुआ है. इस मंदिर की बनावट अन्य मंदिरों से अलग है. इस मंदिर के बाहरी ओर देखने पर हल्की नक्काशी हैं. इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए मंदिर प्रांगण से सीढ़ियों को पार करके भक्त मां शक्ति मां पार्वती के प्रांगण में पहुंचते हैं. सामने पीतल के दरवाजे को भक्त प्रणाम करते हैं. इसका निर्माण जमींदार पंजियारा स्टेट के जमींदार शालिग्राम सिंह ने 1889 में पीतल का द्वार लगाया था. शिव भक्त प्रणाम कर मां के गर्भ गृह में पहुंचते हैं, जहां मां के दो रूपों के दर्शन होते हैं, जिनमें बायीं ओर मां त्रिपुरसुंदरी व दायीं ओर मां जयदुर्गा के रूप के दर्शन होते हैं. यह दोनों देवियां वैद्यनाथ तीर्थ की अधिष्ठात्री देवी जय दुर्गा है.
तांत्रिक विधि से होती है पूजा
बाबा की पूजा के बाद मां पार्वती मंदिर स्थित मां त्रिपुरसुंदरी व मां जयदुर्गा के पूजा का महत्व अधिक है. इन दोनों देवियों के रूपों को चारों ओर स्टील की ग्रील से घिरा हुआ है. इस कारण मां शक्ति की पूजा करने के लिए प्रवेश कर भक्त बायीं ओर से पूजा करते हुए दायीं ओर से बहार निकलते हैं. यहां पर भक्तों वह पुजारी सभी के लिए प्रवेश व निकास द्वार का एक ही रास्ता है. इस मंदिर में ओझा परिवार मंदिर स्टेट की ओर से पूजा करते हैं. यहां पर मां शक्ति की तांत्रिक विधि से पूजा की जाती है.
चार दिन तक पूजा नहीं कर सकते हैं भक्त
भक्त सालों भर मां शक्ति की पूजा कर सकते हैं. केवल आश्विन मास के नवरात्र के समय भक्त चार दिन तक पूजा नहीं कर सकते हैं, नवरात्र के सप्तमी तिथि से नवमी तिथि तक. इस मंदिर में प्रवेश करते ही तीर्थ पुरोहित के वंशज मां पार्वती के प्रांगण में अपने यजमान को संकल्प पूजा कराने के लिए अपने गद्दी पर रहते हैं. इनमें बायीं ओर लालधन गुलाबधन पंडा के वंशज, काली द्वारी पंडा के वंशज, कैलाश पंडा तनपुरिये के वंशज, कैलाश पंडा कंगाल महाराज के वंशज, बड़को छोटको परिवार के वंशज, गणेश कर्मे परिवार के वंशज, भवानी शंकर कर्मे परिवार के वंशज तथा दायी ओर मुच्छल परिवार के वंशज, कुंजीलवार परिवार के वंशज, शिवराम जयराम परिवार के वंशज अपने यात्रियों के संकल्प पूजा, उपनयन, विवाह, मुंडन, विशेष पूजा आदि अनुष्ठान कराते है. यही मां पार्वती के प्रांगण में ही पंडा धर्मरक्षिणी सभा द्वारा दैनिक संध्या आरती की जाती है.
गठबंधन की परंपरा
परंपरा के अनुसार, बाबा बैद्यनाथ मंदिर व मां पार्वती के मंदिर के शिखर को पवित्र धागों से बांधकर गठबंधन जोड़ की परंपरा है. यह परंपरा शिव और शक्ति के गठजोड़ या गठबंधन को कहा जाता है. शास्त्रों में भी बाबा बैद्यनाथ मंदिर और मां पार्वती के मंदिर के शिखर को धागों गठबंधन से जोड़ने की परंपरा का वर्णन है. यहां आने वाले भक्त बाबा का जलाभिषेक करने के बाद अपनी मनोकामना की पूर्ति व परिवार की खुशहाली के लिए बाबा बैद्यनाथ व मां पार्वती मंदिर के बीच पवित्र गठबंधन कराते हैं. यह प्रथा यहां की विशेषताओं में से एक है. जो किसी अन्य ज्योतिर्लिंग में देखने को नहीं मिलता है.

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