Imran Pratapgarhi Parliament Speech || केंद्र सरकार ने जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) की नई दरों का ऐलान किया है, जिसमें अब पॉपकॉर्न को भी कर के दायरे में लाया गया है। इस फैसले के बाद सोशल मीडिया से लेकर आम जनता तक, हर तरफ इसकी चर्चा हो रही है। पॉपकॉर्न पर तीन अलग-अलग श्रेणियों में जीएसटी दरें तय की गई हैं, जिससे लोग हैरान और नाराज हैं। इस विषय पर सांसद और मशहूर शायर इमरान प्रतापगढ़ी की व्यंग्यात्मक स्पीच भी चर्चा का विषय बन गई है।
पॉपकॉर्न पर लागू की गई जीएसटी दरें
सरकार ने पॉपकॉर्न पर जीएसटी दरें इसकी पैकेजिंग और बिक्री के स्वरूप के आधार पर तय की हैं:
- अनपैक्ड पॉपकॉर्न: 5% जीएसटी।
- पैक्ड और ब्रांडेड पॉपकॉर्न: 12% जीएसटी।
- मल्टीप्लेक्स और रेस्टोरेंट में बिकने वाला पॉपकॉर्न: 18% जीएसटी।
इस फैसले का असर सिनेमाघरों में पॉपकॉर्न खरीदने वालों पर सबसे अधिक पड़ेगा, क्योंकि यह पहले ही महंगा था और अब नई दरों ने इसे और महंगा बना दिया है।
सोशल मीडिया पर बाढ़ आई प्रतिक्रियाओं की
इस मुद्दे को लेकर सोशल मीडिया पर यूजर्स ने मजेदार मीम्स और व्यंग्यात्मक टिप्पणियां पोस्ट करनी शुरू कर दी हैं।
- मीम्स की बाढ़: लोग जीएसटी को लेकर अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए हास्य और व्यंग्य का सहारा ले रहे हैं।
- सिने प्रेमियों की शिकायत: पॉपकॉर्न की बढ़ती कीमतों ने सिनेमा का मजा किरकिरा कर दिया है।
इमरान प्रतापगढ़ी की वायरल स्पीच
सांसद और शायर इमरान प्रतापगढ़ी ने इस फैसले पर व्यंग्य करते हुए कहा,
“अब गरीब आदमी पॉपकॉर्न घर पर बनाएगा या भूखा रहेगा। जिस तरह से टैक्स लगाए जा रहे हैं, ऐसा लगता है कि जल्द ही सांस लेने पर भी टैक्स लगेगा।”
उनकी यह स्पीच तेजी से वायरल हो रही है और लोगों के दिलों को छू रही है। उन्होंने इस मुद्दे को आम आदमी के संघर्षों से जोड़ते हुए इसे बढ़ती महंगाई और कर बोझ का प्रतीक बताया।
केंद्र सरकार का पक्ष
सरकार ने इस फैसले को “राजस्व बढ़ाने और समान कर नीति लागू करने” का हिस्सा बताया है। उनका कहना है कि यह कदम देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने के उद्देश्य से उठाया गया है।
जनता की नाराजगी
हालांकि, आम जनता इस फैसले से सहमत नहीं है।
- लोग इसे महंगाई के बढ़ते बोझ का नया उदाहरण मान रहे हैं।
- सिनेमा प्रेमियों का कहना है कि मनोरंजन पहले से ही महंगा था और अब जीएसटी ने इसे और मुश्किल बना दिया है।
विवाद का व्यापक असर
यह विवाद केवल पॉपकॉर्न तक सीमित नहीं रहा। अब यह बढ़ती महंगाई और आम आदमी पर बढ़ते कर बोझ का प्रतीक बन गया है।
- मीम्स और विरोध: सोशल मीडिया पर जनता का गुस्सा साफ नजर आ रहा है।
- जीवनशैली पर प्रभाव: महंगाई के कारण लोग अब पॉपकॉर्न जैसी चीजों से भी दूरी बनाने पर मजबूर हो रहे हैं।
निष्कर्ष
पॉपकॉर्न पर जीएसटी का मुद्दा केवल एक वस्तु पर कर लगाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आम आदमी के बढ़ते खर्च और सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है। जनता की मांग है कि सरकार इस फैसले पर पुनर्विचार करे और महंगाई को नियंत्रित करने के उपाय करे।
क्या पॉपकॉर्न से शुरू हुआ यह विवाद सरकार के लिए बड़े सवाल खड़े करेगा? यह देखना बाकी है।