ISRO Space Mission || लेह की जलवायु शुष्क और अत्यधिक ठंडी है, जहां बंजर भूमि, ऊंचाई वाले स्थल और पृथक परिदृश्य हैं, जो मंगल और चंद्रमा के दृश्यों की तरह दिखाई देते हैं। ऐसे अनूठे भू-भाग ने इसे ग्रहों की खोज के लिए वैज्ञानिक मिशनों के प्रशिक्षण हेतु एक उपयुक्त स्थान बना दिया है। इसी जगह पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक नए प्रकार का मिशन शुरू किया है, जिसका उद्देश्य इंसान को चंद्रमा पर भेजने से पहले उन्हें आवश्यक अनुभव और प्रशिक्षण देना है।
इसरो के अनुसार, भारत का पहला ‘एनालॉग’ अंतरिक्ष मिशन लद्दाख के लेह से शुरू किया गया है। इस स्थान का चयन इसलिए किया गया क्योंकि यहां की प्राकृतिक स्थितियां अंतरिक्ष जैसी कठिन चुनौतियों के समकक्ष मानी जाती हैं। इसरो ने लद्दाख में इस मिशन के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान केंद्र, एएकेए स्पेस स्टूडियो, लद्दाख विश्वविद्यालय, आईआईटी बंबई और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद के साथ सहयोग किया है। यह मिशन एक अंतरग्रहीय निवास की तरह काम करेगा, जो पृथ्वी से बाहर के बेस स्टेशन के निर्माण और वहां की कठिनाइयों का सामना करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण प्रदान करेगा।
इस मिशन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य यह भी है कि कठोर मौसम में मानव शरीर की अनुकूलन क्षमता का अध्ययन किया जाए, ताकि यह समझा जा सके कि अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष जैसी विकट स्थितियों के लिए कैसे अभ्यस्त हो सकते हैं।
यह महीने भर का मिशन, जो अक्टूबर के मध्य में शुरू हुआ, भारत की चंद्र आवास स्थापित करने की योजना के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस मिशन के तहत ‘हैब-1’ नामक एक कॉम्पैक्ट और इन्फ्लेटेबल आवास शामिल है, जिसमें हाइड्रोपोनिक्स खेती, रसोई और स्वच्छता सुविधाओं जैसी आवश्यक व्यवस्थाएं मौजूद हैं। यह एक आत्मनिर्भर वातावरण प्रदान करता है, जो भविष्य में अंतरग्रहीय मिशनों के लिए अत्यंत मूल्यवान डेटा उत्पन्न करेगा।
इसरो का यह अभिनव प्रयास न केवल अंतरिक्ष यात्रा की तैयारी में एक मील का पत्थर है, बल्कि भविष्य के अंतरग्रहीय आवासों के विकास और चंद्रमा पर भारत के सपनों को साकार करने की दिशा में एक साहसी कदम है।