One Nation, One Election Bills: मोदी सरकार को संसद में संख्या जुटाने में हो सकती है मुश्किल, क्या कहता है गणित?

One Nation, One Election

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One Nation, One Election Bills: संसद में पेश होने की तैयारी, लेकिन संख्या बल पर सवाल

One Nation, One Election Bills: मोदी सरकार ने “एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल को लागू करने के लिए अपनी मंशा साफ कर दी है। इस बिल का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराना है। हालांकि, इस ऐतिहासिक कदम को उठाने के लिए सरकार को संसद में आवश्यक समर्थन जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।

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संख्याबल का समीकरण: सरकार के सामने चुनौती

संसद में इस बिल को पास कराने के लिए सरकार को दोनों सदनों में विशेष बहुमत की जरूरत होगी। वर्तमान में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन की स्थिति लोकसभा में मजबूत है, लेकिन राज्यसभा में यह बिल पास करना बड़ी चुनौती होगी।

राज्यसभा में भाजपा और उसके सहयोगियों की कुल संख्या 245 सदस्यों में से लगभग 110 है। बिल को पास कराने के लिए सरकार को 164 सदस्यों का समर्थन चाहिए। यहां से स्पष्ट है कि एनडीए को विपक्षी दलों के समर्थन की जरूरत होगी।

विपक्ष का रुख और सरकार की रणनीति

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” पर विपक्षी पार्टियां बंटी हुई हैं। कांग्रेस और कुछ क्षेत्रीय दल इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताते हैं। वहीं, कुछ दल तटस्थ रुख अपनाए हुए हैं।

सरकार की रणनीति क्षेत्रीय दलों जैसे बीजद, वाईएसआर कांग्रेस, और टीआरएस जैसे दलों को अपने पक्ष में लाने की होगी। इन दलों का रुख बिल के भाग्य का फैसला कर सकता है।

लाभ और आलोचना: जनमत क्या कहता है?

सरकार का दावा है कि इस पहल से चुनावी खर्च में भारी कमी आएगी और नीति-निर्माण में स्थिरता आएगी। हालांकि, आलोचक कहते हैं कि यह संविधान की संघीय संरचना पर प्रहार है और स्थानीय मुद्दों को दबा सकता है।

क्या कहता है इतिहास?

1952 से 1967 तक भारत में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होते थे। लेकिन बाद में सरकारों के समय से पहले गिरने और अलग-अलग राज्यों में राजनीतिक परिस्थितियों के चलते यह परंपरा टूट गई।

आगे की राह: संसद का गणित ही करेगा फैसला

“एक राष्ट्र, एक चुनाव” बिल मोदी सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है। लेकिन इसे हकीकत में बदलने के लिए संसद में राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनाना बड़ी चुनौती है।

आने वाले सत्रों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार विपक्ष को मनाने में कितनी सफल होती है और देश इस ऐतिहासिक बदलाव के लिए तैयार होता है या नहीं।