Prime Minister of Canada || मार्क कार्नी ने कनाडा के 24वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण कर ली है। शुक्रवार को राजधानी ओटावा स्थित रिड्यू हॉल के बॉलरूम में आयोजित समारोह में उन्होंने पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। उनके साथ उनकी कैबिनेट के अन्य सदस्यों ने भी शपथ ग्रहण किया।
भारत-कनाडा संबंधों में सुधार की उम्मीद
मार्क कार्नी ने चुनाव प्रचार के दौरान स्पष्ट किया था कि यदि वे प्रधानमंत्री बनते हैं, तो भारत और कनाडा के व्यापारिक संबंधों को फिर से मजबूत करने के लिए काम करेंगे। हाल के वर्षों में दोनों देशों के रिश्तों में तनाव देखा गया है, खासकर खालिस्तानी आतंकवाद के मुद्दे पर। हालांकि, इस संवेदनशील विषय पर कार्नी की स्पष्ट राय अब तक सामने नहीं आई है, क्योंकि उन्होंने इस पर कोई सार्वजनिक बयान नहीं दिया है।
विपरीत परिस्थितियों में भी आर्थिक नेतृत्व का अनुभव
मार्क कार्नी एक अनुभवी इकोनॉमिस्ट और पूर्व केंद्रीय बैंकर हैं। वर्ष 2008 में उन्हें बैंक ऑफ कनाडा का गवर्नर नियुक्त किया गया था। उन्होंने कनाडा को वैश्विक मंदी से उबरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी नीतियों की सफलता के चलते बैंक ऑफ इंग्लैंड ने 2013 में उन्हें गवर्नर बनने का प्रस्ताव दिया। यह बैंक के 300 वर्षों के इतिहास में पहली बार था कि किसी गैर-ब्रिटिश नागरिक को यह जिम्मेदारी मिली।
लिबरल पार्टी के नए नेता
मार्क कार्नी ने 9 फरवरी को लिबरल पार्टी के नेता का चुनाव जीतकर प्रधानमंत्री पद का रास्ता साफ किया। उन्हें पार्टी के भीतर 85.9% वोट मिले, जिससे उनकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। वह पूर्व प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की जगह सत्ता संभालेंगे। ट्रूडो ने गवर्नर जनरल के पास जाकर औपचारिक रूप से अपना इस्तीफा सौंपा, जिसके बाद शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया गया।
ब्रेक्जिट और अंतरराष्ट्रीय पहचान
बैंक ऑफ इंग्लैंड में अपने कार्यकाल के दौरान मार्क कार्नी ने ब्रेक्जिट से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जिससे वे ब्रिटेन में भी एक चर्चित नाम बन गए। वे 2020 तक बैंक ऑफ इंग्लैंड से जुड़े रहे और उनकी आर्थिक नीतियों ने वैश्विक स्तर पर उनकी पहचान स्थापित की।
नए प्रधानमंत्री से उम्मीदें
मार्क कार्नी की आर्थिक विशेषज्ञता और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनकी मजबूत पकड़ के कारण उनसे उम्मीद की जा रही है कि वे कनाडा को नई ऊंचाइयों तक ले जाएंगे। खासतौर पर भारत-कनाडा के रिश्तों को सुधारने और व्यापारिक संबंधों को फिर से पटरी पर लाने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होगी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि वे अपने कार्यकाल में किस तरह की नीतियां अपनाते हैं और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर क्या रुख रखते हैं।