कतरास: आज (2 अगस्तत) शहीद शक्तिनाथ महतो की 76वीं जयंती उनके पैतृक गांव तेतुलमुड़ी, कर्मस्थल तेतुलमारी के बैजकारटांड तथा समाधि स्थल टाटा सिजुआ बारह नंबर (आजाद सिजुआ) में मनाया जाएगा। स्वजनों के अलावे विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता, समाजसेवी, बुद्धिजीवी सहित हजारों लोग उनकी आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि देंगे। इसको लेकर तैयारी पूरी कर ली गयी है। कौन थे शहीद शक्तिनाथ: महतो गरीब, शोषितों को अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष करने वाले शहीद शक्तिनाथ महतो जन्म 2 अगस्त 1948 को तेतुलमुड़ी बस्ती के एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गणेश महतो व मां का नाम सधुवा देवी है। नाम के अनुरूप ही दूसरों को न्याय दिलाने के लिए अंतिम क्षण तक संघर्ष करने वाले शक्ति ने सामाजिक कुरीतियों को दूर करने तथा सूदखोरों के आतंक से गरीब असहाय को मुक्त कराते हुए अंतिम समय तक आंदोलन करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी। सिजुआ से पूरी की प्रारंभिक शिक्षा : शक्ति ने गांधी स्मारक उच्च विद्यालय सिजुआ से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर आइटीआइ धनबाद में दाखिला लिया। कुमारधुबी में फीटर ट्रेड का प्रशिक्षण प्राप्त कर मुनीडीह प्रोजेक्ट में योगदान दिया। यहीं से शक्ति के जीवन में व्यापक बदलाव आया । मुनीडीह प्रोजेक्ट में काम करने के दौरान कोलियरी क्षेत्र में मजदूरों पर हो शोषण को देख उनका मन विचलित हो उठा। उन्होंने मजदूरों को सूदखोरों के चंगुल से आजाद कराने तथा न्यूनतम मजदूरी दिलाने के लिए आंदोलन का बिगुल फूंका। इसी बीच वह अलग झारखंड राज्य के पुरोधा बिनोद बिहारी महतो के संपर्क में आए और 21 जनवरी 1971 को शिवाजी समाज की जोगता थाना कमेटी का गठन किया। इसमें शक्ति को मंत्री बनाया गया। सामाजिक कुरितीयों के विरुद्ध छेड़ा था मुहिम: बिनोद बाबू के संपर्क में आने के बाद शक्ति ने बाल विवाह, दहेज प्रथा, नशा उन्मूलन के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। समाज के लोगों को शिक्षित करने के उद्देश्य से रात्रि पाठशाला का शुभारंभ किया। आपातकाल के दौरान शक्ति 22 माह तक धनबाद, भागलपुर तथा मुजफ्फरपुर के जेलों में बंद रहे। साथ ही कोयला क्षेत्र के मजदूरों पर हो रहे विभिन्न प्रकार के अत्याचारों के खिलाफ आंदोलन करते रहे। मजदूरों की आवाज बुलंद करने वाले शक्ति माफियाओं को खटकने लगे थे : सूदखोरी, न्यूनतम मजदूरी, समाज को जागरूक करने के लिए शक्ति के द्वारा चलाए जा रहे मुहिम ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था। अब क्षेत्र के लोग उनकी बातों से प्रभावित होने लगे थे। समाज और मजदूर वर्ग में लोकप्रियता के साथ उनका कारवां भी लगातार बढ़ता जा रहा था। जिस कारण वे मजदूरों का शोषण करने वाले व समाज को सामाजिक कुरूतियों में धकेलने वाले माफिया: तंत्र की नजरों में खटकने लगे थे। 22 मई 1975 को मुनीडीह के कारीटांड में एक बैठक के बाद शक्ति की हत्या की अपराधियों ने नाकाम कोशिश की पर शक्ति व उनके समर्थकों ने अपराधियों व माफियाओं के नापाक मंसूबो को परास्त कर दिया। रात गांव में ही बिताने के कारण अपराधियों के कहर से शक्ति तो बच गए, लेकिन उनके तीन साथी शहीद हो गए। इसके बाद शक्ति लगातार माफियाओं निशाने पर रहे और अंततः 28 नवंबर 1977 का दिन कोयलांचल के लिए काला दिन साबित हुआ और सुबह साढ़े दस बजे सिजुआ में गोली व बम मारकर शक्तिनाथ महतो की निर्मम हत्या कर दी गई। शहादत से पहले ही कहा था, इस लड़ाई में पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे हत्या से पूर्व शहीद शक्तिनाथ महतो अक्सर अपने समर्थकों, मजदूर व सामाजिक लोगों से कहते थे यह लड़ाई लंबी होगी और कठिन भी इस लड़ाई में पहली पीढ़ी के लोग मारे जाएंगे, दूसरी पीढ़ी के लोग जेल जाएंगे और तीसरी पीढ़ी के लोग राज करेंगे, जीत अन्ततोगत्वा हमारी ही होगी।
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