Sharad Purnima 2024 || शरद पूर्णिमा: कब और क्यों मनाई जाती है, और क्या हैं इस पर्व की मान्यताएंशरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहा जाता है, भारतीय संस्कृति में विशेष महत्व रखती है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन को मुख्यतः चंद्रमा, देवी लक्ष्मी और भगवान कृष्ण की पूजा से जोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा अपनी पूर्णता के साथ धरती पर अमृत बरसाता है। यही कारण है कि इस दिन लोग खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणों से उसमें अमृत की वर्षा हो।
शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि शरद पूर्णिमा कब और क्यों मनाई जाती है, इसकी पौराणिक मान्यताएं क्या हैं, और इस पर्व से जुड़ी वैज्ञानिक धारणाएं क्या हैं।
शरद पूर्णिमा कब मनाई जाती है?
शरद पूर्णिमा का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो सामान्यतः अक्टूबर के महीने में पड़ता है। इस दिन चंद्रमा अपने पूर्ण आकार में होता है और माना जाता है कि इस दिन उसकी किरणों में औषधीय गुण होते हैं। इसे ‘शरद ऋतु’ की शुरुआत का प्रतीक भी माना जाता है। इसलिए इसे शरद पूर्णिमा कहा जाता है।
शरद पूर्णिमा क्यों मनाई जाती है?
शरद पूर्णिमा मनाने के पीछे कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं। इस दिन चंद्रमा की पूजा विशेष रूप से की जाती है क्योंकि यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों से अमृत वर्षा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है। इसके अलावा, इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। यह मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को जागरण करने और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में समृद्धि और सुख-शांति आती है।
इस दिन लोग खीर बनाकर रातभर खुले आसमान के नीचे रखते हैं, ताकि चंद्रमा की किरणों से वह अमृतमय हो जाए। सुबह उस खीर का प्रसाद रूप में सेवन किया जाता है, जिसे सेहत के लिए बहुत अच्छा माना जाता है।
शरद पूर्णिमा की पौराणिक कथाएं और मान्यताएं
शरद पूर्णिमा के साथ जुड़ी कई पौराणिक कथाएं और धार्मिक मान्यताएं हैं, जो इसे विशेष बनाती हैं। यहां कुछ प्रमुख कथाओं और मान्यताओं का वर्णन किया गया है:
1. चंद्रमा की पूजा और अमृत वर्षा
एक मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा धरती पर अमृत की वर्षा करता है। यह मान्यता प्राचीन काल से चली आ रही है कि चंद्रमा की किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो शरीर को रोगमुक्त और स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इसी कारण लोग इस दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखते हैं और फिर उस खीर को प्रसाद के रूप में सेवन करते हैं।
2. रास लीला और भगवान कृष्ण
शरद पूर्णिमा का संबंध भगवान श्रीकृष्ण से भी है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात को भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ रास लीला का आयोजन किया था। यह रास लीला वृंदावन में यमुना तट पर हुई थी, जहां भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से हर गोपी के साथ नृत्य किया। इस घटना को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है, और इस दिन कृष्ण भक्त विशेष रूप से इस लीला का स्मरण करते हैं।
3. देवी लक्ष्मी की पूजा
शरद पूर्णिमा की रात को देवी लक्ष्मी की पूजा का भी विशेष महत्व है। इसे ‘कोजागरी पूर्णिमा’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘कौन जाग रहा है?’। मान्यता है कि इस रात देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो लोग जागते रहते हैं और उनका पूजन करते हैं, उन पर देवी की कृपा होती है। इसलिए इस दिन रातभर जागकर देवी लक्ष्मी का पूजन किया जाता है, ताकि धन, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति हो।
4. कोजागर व्रत
कोजागर व्रत भी शरद पूर्णिमा के साथ जुड़ा हुआ है। इस व्रत का पालन मुख्य रूप से स्त्रियां करती हैं, जो रातभर जागरण करके देवी लक्ष्मी की पूजा करती हैं। यह व्रत विशेष रूप से आर्थिक समृद्धि और परिवार की खुशहाली के लिए किया जाता है। कोजागर व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन विशेष रूप से लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं और रातभर जागकर देवी का आह्वान करती हैं।
शरद पूर्णिमा से जुड़ी वैज्ञानिक मान्यताएं
शरद पूर्णिमा के पर्व से जुड़ी कुछ वैज्ञानिक धारणाएं भी हैं। प्राचीन काल से चली आ रही मान्यताओं में विज्ञान का भी समर्थन मिलता है। शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब होता है और उसकी किरणों में विशेष प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। इन गुणों के कारण, यह माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणों में अमृत की वर्षा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है।
आधुनिक वैज्ञानिकों का भी मानना है कि चंद्रमा की किरणों का प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है। खासकर शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा का प्रकाश अत्यधिक तेज होता है, जिससे शरीर की ऊर्जा में वृद्धि होती है। चंद्रमा की किरणें मानसिक शांति प्रदान करती हैं और शरीर के कई रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक होती हैं।
शरद पूर्णिमा का धार्मिक और सामाजिक महत्व
शरद पूर्णिमा केवल धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा हुआ पर्व नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व भी है। इस दिन लोग मिल-जुलकर पूजा-पाठ करते हैं और आपस में प्रसाद का आदान-प्रदान करते हैं। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में यह पर्व बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लोग रातभर जागरण करते हैं, भजन-कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।
सामाजिक रूप से यह पर्व आपसी भाईचारे और सौहार्द्र को बढ़ावा देने वाला है। इस दिन सभी लोग साथ मिलकर पूजा करते हैं, जिससे समाज में एकजुटता और प्रेम की भावना का संचार होता है।
शरद पूर्णिमा की प्रमुख परंपराएं
शरद पूर्णिमा के अवसर पर कुछ विशेष परंपराओं का पालन किया जाता है, जिनमें पूजा-पाठ, खीर बनाना, जागरण करना और चंद्रमा की किरणों का स्वागत करना शामिल है। आइए जानते हैं इस पर्व से जुड़ी कुछ प्रमुख परंपराएं:
1. खीर बनाना और उसे चंद्रमा की किरणों में रखना
शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाना और उसे रातभर खुले आसमान के नीचे रखना एक प्रमुख परंपरा है। यह मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें अमृतमयी होती हैं, और जब खीर उन किरणों के संपर्क में आती है, तो वह अमृतमय हो जाती है। अगले दिन सुबह इस खीर को प्रसाद रूप में बांटा जाता है और इसे सेहत के लिए बहुत लाभकारी माना जाता है।
2. रातभर जागरण और देवी लक्ष्मी की पूजा
इस दिन लोग रातभर जागरण करते हैं और देवी लक्ष्मी का पूजन करते हैं। यह मान्यता है कि जो लोग शरद पूर्णिमा की रात को जागते हैं और देवी लक्ष्मी की आराधना करते हैं, उनके घर में धन-धान्य की कभी कमी नहीं होती। यह जागरण मुख्य रूप से आर्थिक समृद्धि और पारिवारिक खुशहाली के लिए किया जाता है।
3. भजन-कीर्तन और रासलीला का आयोजन
शरद पूर्णिमा के अवसर पर विभिन्न धार्मिक स्थलों पर भजन-कीर्तन और रासलीला का आयोजन किया जाता है। खासकर वृंदावन और मथुरा जैसे धार्मिक स्थलों पर इस दिन रासलीला का विशेष आयोजन होता है, जहां भगवान कृष्ण और गोपियों के साथ उनकी दिव्य लीला का प्रदर्शन किया जाता है।
शरद पूर्णिमा और स्वास्थ्य
शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की किरणों में अमृततुल्य गुण होने की बात केवल धार्मिक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका स्वास्थ्य से भी संबंध है। चंद्रमा की किरणें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती हैं। यह दिन विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण होता है जो मानसिक तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याओं से पीड़ित होते हैं। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणों के नीचे बैठने से मानसिक शांति मिलती है और अनिद्रा जैसी समस्याओं में आराम मिलता है। शरद पूर्णिमा एक ऐसा पर्व है, जो न केवल धार्मिक और पौराणिक महत्व रखता है,