धनबाद: धनबाद 20 दिसंबर को गांधी सेवा सदन, कोर्ट मोड़, धनबाद में बांग्ला के प्रसिद्ध लेखक व साहित्यकार स्व. अजीत राय की दूसरी पुण्यतिथि पर अजीत राय स्मृति साहित्य सम्मान समिति धनबाद द्वारा डॉ.सिद्धार्थ बंदोपाध्याय की अध्यक्षता में अजीत राय स्मृति साहित्य सम्मान का प्रथम आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का संचालन भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. काशी नाथ चटर्जी द्वारा किया गया। इस अवसर पर मंचासीन में बांग्ला के चर्चित लेखक समीर भट्टाचार्य,कवि कंकन गुप्ता,अजीत राय स्मृति साहित्य सम्मान समिति धनबाद के सचिव अनवर शमीम व कोषाध्यक्ष दीपांकर बराट, मीना भट्टाचार्य,मनमोहन पाठक,चंदन सरकार, ज्ञान विज्ञान समिति झारखंड के उपाध्यक्ष हेमंत कुमार जायसवाल आदि लोग थे।पुण्यतिथि व सम्मान समारोह का शुरुआत स्व.अजीत राय के तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कि गई।इस अवसर पर संचालन करते हुए डॉ. काशी नाथ चटर्जी द्वारा श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहें कि आप सारे साथी जानते है कि कोयलांचल के प्रख्यात बांगला व हिंदी के लेखक स्व. अजीत राय की मृत्यु 20 दिसंबर 2021 को धनबाद सदर अस्पताल ले जाते वक्त शाम 4 बजे हो गया था, उन्ही के याद में अजीत राय स्मृति साहित्य सम्मान समिति धनबाद द्वारा इस वर्ष से उनके नाम पर पुरस्कार का शुरुआत किया गया है। इस बार पुरस्कार के लिए बांगला के चर्चित लेखक समीर भट्टाचार्य को प्रदान की जा रही है।समीर भट्टाचार्य का जन्म सन् 1954 – 25 दिसंबर तत्कालिक बिहार राज्य के धनबाद जिले के सेंद्रा कोलियरी में हुआ था। कोयला – कंकर,लाल मिट्टी का धूल-मैल चटाकर,कोल आदिवासियों के गोद मे और कोलियरी के लाल मिट्टी में खेल-कूद कर तथा खदानों में चढ- उतरकर ही बचपन बिताया है,वे बच्चपन से ही पिछड़े कोल आदिवासियों के दुख – मुसीबत के साथ-साथ उन्हीं लोगों का झूठा खा -पीकर उन्हीं के परिवेश में रहकर ही बड़े हुए है, पहला शिक्षा भी यही से प्राप्त किए विभिन्न भाषा हिंदी और संस्कृत में।धनबाद कोलियरी में सर्वेयर के नौकरी से पिता जी का सेवानिवृत के बाद पश्चिम बंगाल के प्रत्यंत उदवास्तु ईलाका उत्तर 24 परगना हावड़ा में अस्थाई रूप से रह रहे हैं । प्रारंभिक जीवन से सम्पूर्ण अलग परिवेश में पहुंच कर शुरू हुआ उनके जीवन की दूसरी कड़ी। कठिन संघर्ष जब कि अक्षर ज्ञान के समय से ही समीर भट्टाचार्य का आदत रहा की मन में जो आया सो लिख डालने का, बंगाल में जाने के बाद भी उनकी वही आदत बरकरार रहा। सत्तर के दशक में बंगाल के सुप्रसिद्ध लेखक समरेश बसु का हाथ पकड़ कर बंगला गद्य साहित्य लिखने का शुरुआत किए,समरेश बसु के साथ-साथ अचिंत्य कुमार सेनगुप्ता, सुभाष मुखोपाध्याय, नीरेंद्र नाथ चक्रवर्ती, शंख्य घोष,कविता सिंह , मलय चौधरी,प्रो. अमिताभ दासगुप्ता, ज्योतिनिद्र मैत्र,वासुदेव दासगुप्ता,आशापूर्णा देवी,सुनील बसु,विनय मजूमदार प्रमुख ऐसे बांग्ला साहित्य का प्रख्यात कवि- साहित्यकारों का स्नेह साहित्य का तामिल मिलता रहा । सत्तर का दशक से आज भी समीर भट्टाचार्य नि: स्वार्थ भावनाओं से साहित्य सेवा एवं साहित्य चर्चा किए जा रहें है । वर्ष 1973 का जून महीना से अचिंत्य कुमार सेनगुप्ता द्वारा नामांकित बंगला का चर्चित साहित्य पत्रिका ” शब्दप्रतिमा” का संपादन का काम संभालते आ रहें है । देढ़फर्मा में बने समीर भट्टाचार्य का पहला काव्यग्रंथ सोत्तौरेर फसिल के अंतर्गत कविता जेलखानार चिट्ठी में कर्मचंद गांधी को महात्मा मानने से इंकार करते हुए कर्मचंद गांधी के खिलाफ पंक्ति लिखने के कारणवश पुलिस उनको टॉर्चर के साथ – साथ वर्ष 1979 में गिरफ्तार की।साथ-साथ उस काव्यग्रंथो के बंदेलों को हावड़ा थाना पुलिस अधीक्षक के सामने जला दिया गया,उस समय से बंगाल का कोई पत्र जी३ पत्रिका समीर का लिखा हुआ कोई भी आर्टिकल लेने से इंकार करता रहा और उस समय से आज तक हमेशा समीर भट्टाचार्य विरोध का ही सामना करते आए। इस कारण उनको फिर घर – परिवार से बाहर निकलना पड़ा,पर कभी उनका साहित्य चर्चा में कोई रुकावट नहीं डाल सके। सारे देश हमें , इसी क्रम में वर्ष 2003 से 2009 तक झारखंड का रांची शहर में दैनिक जागरण का मुख्य कार्यालय से संपादक का कार्य किए। वर्ष 1998 में छोटानागपुर भाषा में दो उपन्यास लिखे है। एक- रिझियार-ए पार्ट ऑफ उलगुलान । जो उपन्यास फिल्म बनकर झारखंड के सारे जिले में पहला नागपुरी संवाद बहुल फिल्म के हेसियत से चला है। दूसरी-उग्रवाद पर लिखा हुआ उपन्यास लुकोईर जिसका सब टाइटल जोंक रहा है । इसके एकलव्या हिंदी साहित्य का प्रख्यात साहित्यकार डॉ. जगदीश चंद्र माथुर का सुप्रसिद्ध रचना कोणार्क का, कोनारक नामांकित बांगला में रूपांतर ( भावानुवाद ) किए ।
पेये ओ हाराए अव्यक्त समर्पण जैसे कई बांगला। उपन्यास भी लिखे हुए है । वैश्या की जीवन आधारित बहु चर्चित नाभेला आंचल के साथ – साथ 21 से अधिक कहानी, अनगिनत कविताएं, तकरीबन 12 प्रबंध अग्रंथित पड़े है । जिनमे दो को हजारों विरोध का सामना करना पड़ा। 1. साहित्ये अश्लील बले किछु नेई । जो प्रकाशित हुआ था – इंटरनेशनल साहित्य घोषणा भित्तिक पत्र -शिंकड़ेर सन्धाने पत्रिका में । 2. बाबरी मस्जिद पर लिखा हुआ – भारतवर्ष राजनीति एवं धर्मनिरपेक्षता । जो प्रकाशित हुआ था – शब्दप्रतिमा साहित्य पत्रिका में, प्रतिष्ठान विरोधी बहुचर्चित कथाकार अजीत राय पर निबंध जितेंद्रिय अजीत राय लिख कर भी समीर भट्टाचार्य आलोचना के घेरे में रहें। यह निबंध प्रकाशित हुआ था अमल आलो जर्नल का पचासवीं अंक में। समीर भट्टाचार्य का फेसबुक में आने के बाद परिचय हुआ प्रतिष्ठा विरोधी प्रख्यात साहित्यकार तथा लेखक अजीत राय के साथ,जब अजीत का पता चला कि समीर भट्टाचार्य भी धनबाद का ही भूमिपुत्र है,तब से एक – दूसरे के दोस्त बन गए। फोन में वार्तालाप चलते रहा,धीरे-धीरे दोनो में दोस्ती हुई।अपना जीवन और सांसारिक जीवन के विषय में भी एक दूसरे के साथ शेयर करते रहे । साहित्य संस्कृति विषय पर आलोचना होते रहा । दोनों का विचार में कभी सहमति तो कभी विरोध होते रहा। दोनों का व्यवहार और आचरण से एक दूसरे पर विश्वास और आस्था स्पष्ट होने लगा। अजीत राय ने कोलकाता जाने से पहले समीर को मिलने के लिए टैक्स्ट किया करते थे। किताबों पर समीर भट्टाचार्य के श्रद्धा सह अजीत राय लिख कर समीर भट्टाचार्य को अपना किताब भेंट किया करते थे। समीर भट्टाचार्य पहला शख्स है जो बचपन से हमेशा से हर छोटे – बड़े विषय को गहराई और संदेह के निगाह से देखने लगा, अजीत राय का मृत्यु को स्वाभाविक मृत्यु मानने से इंकार करते हुए प्रश्न जताया कि अजीत का मृत्यु कहीं हत्या तो नही? समीर भट्टाचार्य का मानना है कि विशाल साहित्य जीवन में अजीत राय जैसा साहित्यिक, बहुत सारे बहुमात्रिक चर्चा,बहुमात्रीक प्रकाश , बहुमात्रिक साहित्य सृष्टि किए है , बांगला साहित्य दुनिया में गिने – चुने साहित्यिक को ही देखा है और पढ़ा है । अजीत राय क्या चीज है, अजीत राय का उंचाई कितना है और अजीत राय का परिमंडल, वर्तमान समय का कवि-साहित्यकों ने अब तक धारण नही कर पाए है।आलोचकों ने अब तक अजीत राय पर केवल ऊपरी-ऊपरी आलोचना समालोचना करते है।अजीत राय साहित्य सृष्टि और भावनाओं को गहराई तक पहुंचा नही सके। इन भावनाओं को अन्वेषण करते हुए समीर भट्टाचार्य ने अगले वर्ष उनकी शब्द प्रतिमा साहित्य पत्रिका की ओर से अजीत राय साहित्य गवेशना केंद्र अजीत राय रिसर्च सेंटर खोलने की निर्णय लिए है।इतना ही नही बांग्ला में साहित्य करने वाला साहित्यिक जब खुद को लेकर चिंतित है, खुद को लेकर वक्त गुजार रहे है , खुद के प्रचार में ही व्यस्त है।बंगाल में सर्वप्रथम अजीत राय का नाम से अजीत राय साहित्य पुरस्कार का घोषणा की और पिछले 27 अगस्त 2023 को बांग्ला साहित्य शुभंकर गुह को अजीत राय साहित्य पुरस्कार प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया।मानों इसके अलावा अजीत राय का भावनाओं के साथ-साथ साहित्य के आंगन में अजीत राय का नाम पत्थर की लकीर की तरह स्थापित करना समीर भट्टाचार्य का कर्तव्य बन गया है । इसके पश्चात समीर भट्टाचार्य को बुके, शॉल एवं अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया तथा इस अवसर पर संक्षिप्त वक्ता में बरूण सरकार,विश्वजीत गुप्ता, अंजन चक्रवर्ती,गोपाल भट्टाचार्य , मानिक राय,भोला नाथ राम, विकाश कुमार ठाकुर,बेगू ठाकुर , सपन मांजी ,राजकुमार सरकार व रवि कुमार सिंह द्वारा श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए अपना विचार रखें। इसके साथ दीपांकर बराट द्वारा देकर समापन की गई।इस कार्यक्रम को सफल करने में रानी मिश्रा,मिठू दास,सविता कुमारी,मधेश्वर नाथ भगत,रजनीकांत मिश्रा आदि लोग उपस्थित थे।