Bhagwat Katha Wisdom: भक्ति और वैराग्य से परिपूर्ण जीवन के अद्भुत अध्याय

Bhagwat Katha Wisdom: दिव्य प्रसंगों में महर्षि वेदव्यास के पुत्र सुखदेव जी का जन्म एक अलौकिक घटना के रूप में वर्णित है। कहा जाता है कि वे बारह वर्षों तक माता के गर्भ में रहे क्योंकि वे संसार के बंधनों से दूर रहना चाहते थे। जब स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने गर्भ से बाहर आने का आग्रह किया, तब वे इस संसार में प्रकट हुए। जन्म के तुरंत बाद वे वन में तप करने चले गए — एक ऐसे संत के रूप में जिन्होंने वैराग्य और ब्रह्मज्ञान को जीवन का सार बना लिया।
परीक्षित जी को श्राप: भाग्य और कर्म का गूढ़ संबंध
परीक्षित राजा, जो कि धर्मनिष्ठ और नीतिपरायण शासक थे, उनसे एक दिन भूलवश शमीक ऋषि का अपमान हो गया। यह घटना उनके भाग्य को पलट देने वाली साबित हुई, जब ऋषिपुत्र श्रृंगी ने उन्हें तक्षक सर्प द्वारा सात दिन में मृत्यु का श्राप दे दिया। यह श्राप न केवल परीक्षित जी के जीवन का मोड़ था, बल्कि इससे भागवत कथा का अद्भुत आरंभ भी हुआ।
कुंती माता का चरित्र: संकट में भी अडिग रही भक्ति
Bhagwat Katha Wisdom में कुंती माता का चरित्र हमें सिखाता है कि जीवन में कितने भी दुख आएं, ईश्वर का स्मरण और भजन कभी नहीं छोड़ना चाहिए। त्याग, वनवास, संघर्ष और युद्ध के दर्दनाक अनुभवों के बावजूद उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण पर अडिग विश्वास बनाए रखा। उनकी प्रार्थनाएं सच्ची भक्ति और समर्पण का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
मुक्ति का मार्ग: सुखदेव जी द्वारा श्रीमद्भागवत की कथा
जब राजा परीक्षित को अपने श्राप की सूचना मिली, उन्होंने गंगा तट पर सात दिन तक निराहार बैठकर मृत्यु की प्रतीक्षा की। इसी दौरान सुखदेव जी ने श्रीमद्भागवत कथा का वाचन किया। यह कथा उनके लिए मुक्ति का माध्यम बनी। परीक्षित जी ने जीवन के अंतिम क्षणों में भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करते हुए मोक्ष प्राप्त किया। श्रीमद्भागवत कथा केवल ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन का आध्यात्मिक मार्गदर्शन भी है।
निष्कर्ष
Bhagwat Katha Wisdom के यह प्रसंग हमें सिखाते हैं कि जीवन में वैराग्य, कर्मफल, भक्ति और भगवद्कथा का कितना गहरा महत्व है। सुखदेव जी का ज्ञान, कुंती की श्रद्धा, परीक्षित का धैर्य — यह सभी प्रेरक प्रसंग आध्यात्मिक जागरण और आत्मकल्याण का मार्ग दिखाते हैं।
श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन राजा परीक्षित के प्रसंग सुन भाव-विभोर हुए
श्री सुखदेव जी के जन्म की कथा परीक्षित जी के जन्म की कथा कुंतीचरित्र एवं अन्य प्रसंग सुनाया। कथावाचिका ने शुकदेव परीक्षित संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि एक बार परीक्षित महाराज वन में चले गए। उनको प्यास लगी तो समीक ऋषि से पानी मांगा। ऋषि समाधि में थे, इसलिए पानी नहीं पिला सके। परीक्षित ने सोचा कि साधु ने अपमान किया है। उन्होंने मरा हुआ सांप उठाया और समीक ऋषि के गले में डाल दिया। यह सूचना पास में खेल रहे बच्चों ने समीक ऋषि के पुत्र को दी। ऋषि के पुत्र ने शाप दिया कि आज से सातवें दिन तक्षक नामक सर्प आएगा और राजा को जलाकर भस्म कर देगा।
समीक ऋषि को जब यह पता चला तो उन्होंने दिव्य दृष्टि से देखा कि यह तो महान धर्मात्मा राजा परीक्षित हैं और यह अपराध इन्होंने कलियुग के वशीभूत होकर किया है। तो वह अपना राज्य अपने पुत्र जन्मेजय को सौंपकर नगाe के तट पर पहुंचे। वहां बड़े ऋषि, मुनि देवता आ पहुंचे और अंत में व्यास नंदन शुकदेव वहां पहुंचे। और सी परीक्षित जी को भागवत कथा सुनानाआरंभ किया
कथा सुनकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो गए। कथा के दौरान धार्मिक गीतों पर श्रद्धालु जम कर झूमें। कथा में दूसरे दिन बड़ी संख्या में महिला-पुरूष कथा सुनने पहुंचे।