शहीद भगत सिंह का संघर्ष,बलिदान और विचार आज भी प्रासंगिक :पवन महतो
DHANBAD | गुरुवार 28 सितंबर को शहीद भगत सिंह की जयंती पर मार्क्सवादी युवा मोर्चा ने मासस केंद्रीय कार्यालय टेंपल रोड, पुराना बाजार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया।इसके पूर्व मार्क्सवादी युवा मोर्चा ने शहीद भगत सिंह की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता मायुमो जिला अध्यक्ष पवन महतो एंव संचालन जिला सचिव राणा चटराज ने की। इस अवसर पर जिला अध्यक्ष पवन महतो ने गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहा कि देश की सरकार भगत सिंह को शहीद नहीं मानती है जबकि आजादी के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह हर हिंदुस्तानी के दिल में बसते हैं।शहीद भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है।उस समय उनके चाचा अजीत सिंह और श्वान सिंह भारत की आजादी में अपना सहयोग दे रहे थे।ये दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पार्टी के सदस्य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए ये बचपन से ही अंग्रेजी सरकार से घृणा करने लगे थे। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्यधिक प्रभावित थे। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने 1920 में महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे हैं अहिंसा आंदोलन में भाग लेने लगे हैं l जिसमें गांधी जी विदेशी सामानों का बहिष्कार कर रहे थे, 14 वर्ष की आयु में ही भगत सिंह ने सरकारी स्कूलों की पुस्तके और कपड़े जला दिए।इसके बाद इनके पोस्टर गांव में छपने लगे।भगत सिंह पहले महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे हैं आंदोलन और भारतीय नेशनल कांफ्रेंस के सदस्य थे, 1921 में जब चौरा – चौरा हत्याकांड के बाद गांधी जी ने किसानों का साथ नहीं दिया तो भगत सिंह पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। उसके बाद चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में गठित हुई गदर दल के हिस्सा बन गए। उन्होंने चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया, 9 अगस्त 1925 को शाहजहांपुर से लखनऊ के लिए चली आठ नंबर डाउन पैसेंजर से काकोरी नामक छोटे से स्टेशन पर सरकारी खजाने को लूट लिया गया।यह घटना काकोरी कांड नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है।इस घटना को अंजाम भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आजाद और प्रमुख क्रांतिकारियों ने साथ मिलकर अंजाम दिया था।काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों ने हिंदुस्तान पब्लिक एसोसिएशन के क्रांतिकारियों की धर पकड़ तेज कर दी और जगह-जगह अपने एजेंट बहाल कर दिए।भगत सिंह और सुखदेव लाहौर पहुंच गए हैं। वहां उनके चाचा सरदार किशन सिंह ने एक खटाल खोल दिया और दूध के कारोबार में लगा दिया। भगत सिंह को फिल्में देखना और रसगुल्ला खाना काफी पसंद था। वे राजगुरु और यशपाल के साथ जब भी मौका मिलता था। फिल्म देखने चले जाते थे। चार्ली चैप्लिन की फिल्में बहुत पसंद थी।इस पर चंद्रशेखर आजाद बहुत गुस्सा होते थे। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अफसर जे पी सांडर्स को मारा था। इसमें चंद्रशेखर आजाद ने उनकी पूरी सहायता की थी। क्रांतिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर भगत सिंह ने अलीपुर रोड, दिल्ली स्थित ब्रिटिश भारत की तत्कालीन सेन्ट्रल असेंबली के सभागार में 8 अप्रैल 1929 को अंग्रेज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेके थे।भगत सिंह क्रांतिकारी देशभक्त ही नहीं बल्कि एक अध्ययनशील विचारक, कलम के धनी, दार्शनिक, चिंतक, लेखक, पत्रकार और महान मनुष्य थे।उन्होंने 23 वर्ष की छोटी सी आयु में फ़्रांस,आयरलैंड और रूस की क्रांति का विषद अध्ययन किया था l हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, संस्कृत, पंजाबी, बंगला और आयरिश भाषा के मर्मज्ञ चिंतक और विचारक भगत सिंह भारत में समाजवाद के पहले व्याख्यात थे। भगत सिंह अच्छे वक्ता,पाठक और लेखक भी थे। उन्होंने अकाली और कृीति दो अखबारों का संपादन भी किया। जेल में भगत सिंह करीब दो साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहें l जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उस दौरान उनके लिखे गए लेख एवं परिवार को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं।अपने लेखों में उन्होंने कई तरह से पूंजीपतियों को अपना शत्रु बताया है।उन्होंने लिखा कि मजदूरों का शोषण करने वाला चाहे एक भारतीय ही क्यों ना हो, वह उनका शत्रु है। उन्होंने जेल में अंग्रेजी में एक लेख भी लिखा। जिसका शीर्षक था। मैं नास्तिक क्यों हूं ? जेल में भगत सिंह एवं उनके साथियों ने 64 दिनों तक भूख हड़ताल की। उनके एक साथी यतींद्रनाथ दास ने तो भूख हड़ताल में अपने प्राण ही त्याग दिए थे, 23 मार्च 1931 को भगत सिंह तथा इनके दो साथी सुखदेव एवं राजगुरु को फांसी दे दी गई l फांसी पर जाने से पहले वह लेनिन के जीवन का अध्ययन कर रहे थे और वह अपनी मृत्यु से पहले समाप्त करना चाहते थे।गोष्ठी में मुख्य रूप से विश्वजीत राय, रामलाल दा, जिला उपाध्यक्ष सुजीत चंद्रा, संतोष रवानी, सुरेश दास, अरधेंदु दत्ता,गुड्डू रजक, श्याम शर्मा,सुरेश रवानी,अनीश रवानी,शंकर महतो, राजेश बाउरी, मिथलेश कुम्हार, चन्दन सिंह,प्रकाश भुईया आदि शामिल थे।