Hindi as National Language: अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद ने सांसद को सौंपा स्मार पत्र

अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद ने सांसद को सौंपा स्मार पत्र

अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद ने सांसद को सौंपा स्मार पत्र

Hindi as National Language: हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने हेतु अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद की पहल

Hindi as National Language: सांसद ढुलू महतो से हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने के लिए संसद में आवाज उठाने का अनुरोध

Hindi as National Language: हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा (Hindi as National Language) घोषित किए जाने की मांग को लेकर अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद, झारखंड इकाई ने बड़ा कदम उठाया है। गुरुवार को परिषद के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश चंद्र तिवारी के नेतृत्व में एक सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भाजपा सांसद ढुलू महतो को उनके चिटाही स्थित आवासीय कार्यालय में स्मार पत्र सौंपा और संसद में इस विषय को प्रमुखता से उठाने की अपील की।

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संसद में हिंदी के पक्ष में बुलंद हो आवाज

परिषद ने सांसद से अनुरोध किया कि वे संसद भवन में हिंदी को राष्ट्रभाषा घोषित करने की दिशा में जोरदार पहल करें। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि एक राष्ट्रीय भाषा से देश में सांस्कृतिक एकता, संवाद में सहूलियत और जनभावनाओं को सशक्त अभिव्यक्ति मिलेगी। हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की यह मुहिम हृदय नारायण मिश्रा, राष्ट्रीय अध्यक्ष व संस्थापक, के नेतृत्व में पूरे देश में चल रही है।

दस लाख से अधिक सदस्यों की है भागीदारी

हिंदी परिषद का यह अभियान पूरे भारत में सक्रिय है और इसमें दस लाख से अधिक पदाधिकारी व सदस्य सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं। परिषद का मानना है कि हिंदी को केवल राजभाषा नहीं, बल्कि राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्जा दिया जाना चाहिए ताकि वह देश की पहचान और आत्मा के रूप में स्थापित हो सके।

प्रतिनिधिमंडल की उपस्थिति में हुआ आग्रह

स्मार पत्र सौंपते समय प्रदेश अध्यक्ष सुरेश चंद्र तिवारी के साथ मनोहर पांडेय, सर्वानंद ओझा, प्रेम कुमार तिवारी, अनंत कुमार तिवारी, अनिल उपाध्याय और श्रीराम पांडेय उपस्थित रहे। सभी ने एकमत होकर सांसद से इस राष्ट्रहित के मुद्दे को संसद में प्रमुखता से रखने की अपील की।

निष्कर्ष

Hindi National Language की मुहिम को मिल रहा जनसमर्थन

अंतरराष्ट्रीय हिंदी परिषद द्वारा चलाया जा रहा हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का अभियान अब जनप्रतिनिधियों तक पहुँच चुका है। यह पहल न सिर्फ भाषा प्रेमियों के लिए प्रेरणादायक है, बल्कि यह देश को भाषाई एकता के सूत्र में बाँधने की दिशा में एक सशक्त प्रयास है। अब देखना होगा कि संसद में यह मांग किस प्रकार से प्रतिध्वनित होती है।