Khwaja Gharib Nawaz Urs 2025 || ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के 813वें उर्स की छठी पर पारंपरिक रस्में और आस्था का उमड़ा सैलाब

Khwaja Gharib Nawaz Urs 2025

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Khwaja Gharib Nawaz Urs 2025 || सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती का 813वां उर्स इस साल बेहद श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया गया। मंगलवार को उर्स के छठे दिन की शुरुआत सुबह 9 बजे कुरान खानी के बाद कुल की महफिल से हुई। इसके बाद दोपहर 1 बजे रंग पेश किया गया। इस पवित्र अवसर पर दरगाह दीवान सैयद जैनुअल आबेद्दिन महफिल से उठकर जन्नती दरवाजा होते हुए आस्ताने पहुंचे, जहां कुल की फातिहा अदा की गई। इसके बाद ख्वाजा गरीब नवाज की मजार की खिदमत कर जन्नती दरवाजा बंद कर दिया गया।

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सोमवार रात से शुरू हुआ आस्था का सफर

उर्स की पारंपरिक रस्मों का सिलसिला सोमवार रात से ही शुरू हो गया था। रात 8 बजे के बाद हजारों जायरीन ने दरगाह की दीवारों को गुलाब जल और केवड़े से धोना शुरू कर दिया। दरगाह और उसके आसपास करीब एक किलोमीटर के दायरे में जायरीन का जनसैलाब उमड़ पड़ा। देर रात तक दरगाह की सफाई और कुल के छींटे लगाने का क्रम जारी रहा।

छठी के दिन की खास रस्में

छठी के दिन दरगाह में कुल की रस्म अदा करना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। सुबह से ही हजारों जायरीन दरगाह में जुटे और कुल के छींटे लगाने की रस्म में हिस्सा लिया। इस दिन दरगाह का जन्नती दरवाजा, जो साल में केवल चार बार खुलता है, दोपहर के बाद बंद कर दिया गया।

उर्स का समापन और बड़े कुल की रस्म

मंगलवार की दोपहर के बाद ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स का समापन बड़े कुल की रस्म के साथ हुआ। दरगाह के खादिमों ने पारंपरिक तौर पर इस रस्म को निभाया। इस दौरान खादिम समुदाय के लोग आपस में दस्तारबंदी कर परंपरा का निर्वाह करते हैं।

महफिल और सूफियाना कलाम का आकर्षण

दरगाह के महफिल खाने में सोमवार रात से लेकर मंगलवार तक सूफियाना कलाम और पारंपरिक कव्वालियों की महफिलों ने जायरीन को मंत्रमुग्ध किया। शाही कव्वालों ने इस मौके पर सूफी संगीत की ऐसी प्रस्तुतियां दीं, जिसने माहौल को और भी आध्यात्मिक बना दिया।

उर्स के दौरान सुरक्षा व्यवस्था

हजारों जायरीन की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए दरगाह बाजार, नला बाजार, अंदर कोट और पन्नी ग्राम चौक जैसे क्षेत्रों में बैरिकेडिंग की गई थी। प्रशासन की ओर से सुरक्षा के व्यापक इंतजाम किए गए थे, जिससे जायरीन को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।

समापन

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स का यह पावन अवसर न केवल आस्था और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि भारतीय सूफी संस्कृति की समृद्ध परंपराओं का भी अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। हजारों जायरीन की उपस्थिति और उनकी श्रद्धा इस आयोजन को एक विशेष स्थान प्रदान करती है।

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