Sharda Sinha Death || बिहार की स्वर कोकिला और लोकगायिका शारदा सिन्हा का मंगलवार रात निधन हो गया। मल्टीपल मायलोमा से जूझ रहीं शारदा सिन्हा को कुछ दिन पहले इलाज के लिए दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। छठ पूजा के गीतों के लिए मशहूर लोकगायिका ने छठ पर्व के दौरान ही अपनी आखिरी सांस ली। शारदा सिन्हा को पद्म श्री और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ।
लोकप्रिय लोक गायिका शारदा सिन्हा की जीवनी: भारतीय लोक संगीत की अद्वितीय आवाज़
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के समस्तीपुर जिले के हिरणपट्टी गांव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही संगीत में रुचि थी, और उन्होंने अपने परिवार के सहयोग से संगीत की शुरुआती शिक्षा प्राप्त की। बाद में, उन्होंने संगीत में औपचारिक शिक्षा ली और संगीत को अपने जीवन का हिस्सा बना लिया। उनकी पढ़ाई दरभंगा और पटना विश्वविद्यालय में हुई, जहाँ से उन्होंने संगीत में स्नातक और परास्नातक की डिग्री प्राप्त की।
संगीत करियर की शुरुआत
शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत भारतीय लोक संगीत से की और बहुत जल्दी ही उनकी आवाज़ और गायकी का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगा। उनकी विशेष पहचान भोजपुरी, मैथिली, और मगही लोकगीतों में रही है, जिनमें उन्होंने अद्भुत गहराई और सांस्कृतिक समृद्धि का समावेश किया।
प्रमुख गीत और लोकप्रियता
शारदा सिन्हा ने कई लोकप्रिय गीत गाए हैं, जो हर त्योहार और खास अवसरों पर सुनाई देते हैं। उनके कुछ सबसे मशहूर गीतों में शामिल हैं:
- कांच ही बांस के बहंगिया – यह गीत छठ पूजा के अवसर पर विशेष रूप से लोकप्रिय है और इसे सुनकर हर भक्त के दिल में छठ पूजा की भावना जाग उठती है।
- पहिले पहिल हम कईनी छठ बरतिया – यह गीत उन व्रतियों की भावना को व्यक्त करता है, जो पहली बार छठ पूजा का व्रत कर रहे हैं।
- सैयां आयल बड़े धीरे से – इस गीत ने भी लोगों के दिलों में जगह बनाई और यह शादी-विवाह में आज भी खूब गाया जाता है।
- हो दीनानाथ – छठ पूजा के इस गीत में भक्तों की आस्था और श्रद्धा की झलक मिलती है।
शारदा सिन्हा की आवाज में ऐसा जादू है कि उनके गाए गीत सुनते ही हर व्यक्ति अपनी संस्कृति और परंपराओं से जुड़ा हुआ महसूस करता है।
योगदान और उपलब्धियाँ
शारदा सिन्हा का योगदान भारतीय लोक संगीत में अविस्मरणीय है। उनके गीत न केवल बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में, बल्कि पूरे भारत और विदेशों में भी प्रसिद्ध हैं, जहाँ भारतीय समुदाय रहते हैं। उन्हें “बिहार की बेटी” के नाम से भी जाना जाता है, और उनके गीत लोक संगीत में उनके योगदान की अद्वितीयता को दर्शाते हैं।
सम्मान और पुरस्कार
शारदा सिन्हा को उनके उत्कृष्ट संगीत योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाज़ा गया है, जिनमें शामिल हैं:
- पद्म भूषण (2018) – भारतीय लोक संगीत में उनके अद्वितीय योगदान के लिए उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- पद्म श्री (1991) – लोक संगीत में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
- इसके अलावा, उन्हें बिहार सरकार और कई सांस्कृतिक संगठनों से भी सम्मान प्राप्त हुए हैं।
शारदा सिन्हा की विशेषता
शारदा सिन्हा की गायकी की खासियत उनकी आवाज की मिठास और गीतों में गहराई है। उनके गीतों में ग्रामीण जीवन की सरलता, भावनात्मकता और सजीवता का समावेश होता है। उनकी आवाज में छठ पूजा, होली, शादी-ब्याह, और अन्य पारंपरिक अवसरों के गीत सुनने पर लोग उस मौके का वास्तविक अनुभव कर सकते हैं।
भारतीय संस्कृति में योगदान
शारदा सिन्हा का योगदान भारतीय संस्कृति को समृद्ध बनाने में भी अहम है। उनके गीतों ने पारंपरिक भारतीय त्योहारों, विशेषकर छठ पूजा को एक नई पहचान दी है। उनके गायन से न केवल उनकी मातृभूमि बल्कि पूरे देश का नाम गौरवान्वित हुआ है। उनके गीतों से बिहार और उत्तर प्रदेश की संस्कृति का प्रचार-प्रसार हुआ और इनकी आवाज़ हर उस भारतीय के दिल में बसी है जो अपनी संस्कृति से जुड़ा महसूस करता है।
शारदा सिन्हा भारतीय लोक संगीत की अमूल्य धरोहर हैं। उनकी मधुर आवाज और उनके गीतों की अद्भुत लोकप्रियता ने उन्हें लोक संगीत का एक अमर प्रतीक बना दिया है। उनके गीत आज भी हर उत्सव और त्योहार पर सुनाई देते हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि वे भारतीय लोक संगीत की एक सजीव किंवदंती हैं। उनका जीवन और उनका संगीत हमेशा से भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है, और उनकी मधुर आवाज आने वाली पीढ़ियों के लिए एक धरोहर के रूप में बनी रहेगी।
शारदा सिन्हा का संगीत और उनका योगदान हर भारतीय को अपनी मिट्टी और अपनी जड़ों से जोड़ता है, और यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।