Shrimad Bhagwat Katha || पूज्य श्री सुरेन्द्र हरिदास जी महाराज ने आज की कथा में अपने भक्तों को मानव जीवन के महत्वपूर्ण कर्तव्यों की याद दिलाई। उन्होंने कहा कि माता-पिता का सम्मान करना मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म है। माता-पिता हमारे जीवन के पहले गुरु होते हैं, जिनसे हम सच्चाई, संस्कार और धर्म का महत्व सीखते हैं।
धर्म का सही अर्थ
महाराज श्री ने स्पष्ट किया कि धर्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सत्य, अहिंसा और नैतिकता का पालन करने का जीवन दर्शन है। बच्चों को सत्य के मार्ग पर चलने और एक जिम्मेदार नागरिक बनने की शिक्षा देना हर अभिभावक का कर्तव्य है।
सनातन धर्म का संरक्षण
महाराज जी ने भारत की सनातन संस्कृति पर जोर देते हुए कहा कि भारत का पहला अधिकार सनातनियों का है। सनातन धर्म भारत की प्राचीन सभ्यता और संस्कृति की आत्मा है। इसे जीवित रखने के लिए एक मजबूत सनातन बोर्ड का गठन करना आवश्यक है। यह बोर्ड न केवल सनातन धर्म की रक्षा करेगा, बल्कि इसे समय की धारा के साथ जोड़कर आगे बढ़ाने में मदद करेगा।
नशा मुक्त समाज का संदेश
उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी समारोह, जैसे शादी या अन्य उत्सवों में शराब और नशे का कोई स्थान नहीं होना चाहिए। ऐसे अवसरों पर लोगों को श्रद्धा, पवित्रता और अच्छे आचार-व्यवहार के साथ सामाजिक संदेश देना चाहिए।
सहयोग और सेवा का महत्व
महाराज श्री ने लोगों को दूसरों की मदद करने और समाज की भलाई के लिए कार्य करने की प्रेरणा दी। उन्होंने कहा कि मानव जीवन का सबसे बड़ा धर्म दूसरों की सेवा करना है। हर व्यक्ति को अपने आस-पास के जरूरतमंदों की सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए।
कार्यक्रम में समाज का योगदान
यह कार्यक्रम समाज के विभिन्न प्रमुख लोगों के सहयोग से आयोजित किया गया। इनमें किशोरी गुप्ता, बिजय झा, अशोक वर्मा, विनय कृष्ण गुप्ता, बिजय गुप्ता, श्रीकृष्ण गुप्ता, अवधेश कु. गुप्ता, मनोज गुप्ता, उदय वर्मा, सुशील खैतान, हिम्मत सिंह, दीपक सोनी, महेश अग्रवाल, राजेश चौखानी, विकास साहू, संजय गुप्ता, शिवानी झा, कस्तूरी देवी, गीता देवी, अल्का देवी, बबिता देवी, नर्मदा देवी, मनीषा देवी, कविता गुप्ता, सुष्मा वर्मा, माया खैतान और सुमन देवी का विशेष योगदान रहा।
पूज्य महाराज श्री ने भक्तों को जीवन में धर्म, सेवा और माता-पिता के सम्मान का महत्व समझाया। उन्होंने प्रेरणा दी कि एक जिम्मेदार और संस्कारी समाज का निर्माण तभी संभव है, जब हम अपने धर्म और संस्कृति के मूल्यों का पालन करें।
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