Sindri News || 1 जनवरी को ज्ञान विज्ञान समिति और जनवादी महिला समिति के संयुक्त तत्वावधान में केडी क्लोनी, सिंदरी में सफदर हाशमी की शहादत दिवस पर श्रद्धांजलि सभा और विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। सफदर हाशमी, जो अपने नाटकों और सामाजिक थिएटर में योगदान के लिए जाने जाते हैं, की याद में आयोजित इस कार्यक्रम ने उनकी विचारधारा और योगदान पर प्रकाश डाला।
सफदर हाशमी: एक प्रेरणास्त्रोत
विचार गोष्ठी का उद्घाटन करते हुए ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. काशी नाथ चटर्जी ने कहा, “सफदर हाशमी केवल एक नाटककार या कलाकार ही नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी विचारक थे। उनकी कला ने समाज को नई दिशा दी। नुक्कड़ नाटक के माध्यम से वे आम जनता तक सामाजिक संदेश पहुँचाते थे।”
उन्होंने बताया कि सफदर हाशमी ने 1973 में जन नाट्य मंच की नींव रखी और अपने नाटक ‘हल्ला बोल’ के माध्यम से सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई। 1989 में, साहिबाबाद में इसी नाटक के मंचन के दौरान उनकी हत्या कर दी गई। उनकी पत्नी ने चार दिन बाद उसी स्थान पर ‘हल्ला बोल’ का मंचन कर यह संदेश दिया कि सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता।
विचार गोष्ठी में वक्ताओं के विचार
विचार गोष्ठी की अध्यक्षता जनवादी महिला समिति की नगर अध्यक्ष रानी मिश्रा ने की और संचालन विकास कुमार ठाकुर ने किया।
ज्ञान विज्ञान समिति और जनवादी महिला समिति के वक्ताओं ने सफदर हाशमी के जीवन और उनके संघर्षों को याद किया।
रवि कुमार सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, ने कहा, “सफदर हाशमी की शहादत हमें यह सिखाती है कि कला और संस्कृति के माध्यम से समाज में बदलाव लाया जा सकता है।”
हेमंत कुमार जयसवाल, प्रदेश उपाध्यक्ष, ने नुक्कड़ नाटकों के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “सफदर ने अपनी कला के माध्यम से आम जनता को जागरूक किया, और यह परंपरा आज भी प्रासंगिक है।”
एडवा नगर सचिव मिठू दास ने कहा, “सफदर हाशमी की विचारधारा आज भी हमारी प्रेरणा है। उनके नाटक सामाजिक अन्याय और असमानता के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक हैं।”
उपस्थित गणमान्य और उनके विचार
इस गोष्ठी में कई प्रमुख सदस्य और वक्ता उपस्थित थे:
- डॉ. काशीनाथ चटर्जी, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, ज्ञान विज्ञान समिति
- रानी मिश्रा, एडवा सिंदरी नगर अध्यक्ष
- विकास कुमार ठाकुर, जिला उपाध्यक्ष, ज्ञान विज्ञान समिति
- रवि कुमार सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, ज्ञान विज्ञान समिति
इसके अलावा, राज नारायण तिवारी, गौतम प्रसाद, प्रफुल्ल कुमार स्वैन्न, सुबल चंद्र दास, राम लायक राम, मुकेश कुमार, रंजू प्रसाद, बासुमति स्वैन और आर.के. मिश्रा ने भी अपने विचार साझा किए।
सफदर हाशमी की शहादत न केवल कला और थिएटर के क्षेत्र में, बल्कि सामाजिक न्याय और समानता की लड़ाई में भी एक अमिट छाप छोड़ गई है। इस आयोजन ने उनकी विचारधारा और उनके संघर्षों को न केवल याद किया, बल्कि आज की पीढ़ी को उनसे प्रेरणा लेने का अवसर भी प्रदान किया। सफदर हाशमी के प्रति यह श्रद्धांजलि उनके अमूल्य योगदान को हमेशा जीवित रखेगी।