Sohrai Parva || आयोजित इस पर्व ने न केवल क्षेत्रीय बल्कि सांस्कृतिक महत्व को भी रेखांकित किया
Sohrai Parva || सोहराय भारत कोटा परब झारखंड और आसपास के आदिवासी समुदायों का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है, जिसे फसल कटाई के बाद मनाया जाता है। यह पर्व मुख्य रूप से प्रकृति, कृषि और मवेशियों के प्रति आभार प्रकट करने के लिए समर्पित है। यह त्योहार झारखंड के धनबाद जिले के सिंदरी क्षेत्र के अकाना घूटू जैसे ग्रामीण इलाकों में विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है। 10 जनवरी को आयोजित इस पर्व ने न केवल क्षेत्रीय बल्कि सांस्कृतिक महत्व को भी रेखांकित किया।
सोहराय परब का महत्व
सोहराय परब का मूल उद्देश्य प्रकृति और कृषि के प्रति आदर प्रकट करना है। यह त्योहार उस समय मनाया जाता है, जब फसल कटाई का कार्य पूरा हो चुका होता है। यह पर्व कृषकों और आदिवासी समुदायों के लिए एक ऐसा समय होता है, जब वे कड़ी मेहनत के बाद अपनी खुशियों को परिवार और समाज के साथ साझा करते हैं।
सोहराय पर्व में गाय, बैल और अन्य पालतू पशुओं की पूजा की जाती है, क्योंकि उन्हें खेती और जीवनयापन का अहम हिस्सा माना जाता है। मवेशियों को सजाया जाता है, उनकी पूजा की जाती है, और उनके प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।
सोहराय भारत कोटा परब के प्रमुख आयोजन
- मवेशियों की पूजा और सजावट:
मवेशियों को इस त्योहार में विशेष रूप से तैयार किया जाता है। उनकी सींगों और शरीर को प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता है। पूजा के दौरान गऊ माता और बैल की पूजा की जाती है, जो आदिवासी जीवन में कृषि के प्रतीक हैं। - पारंपरिक नृत्य और गीत:
सोहराय परब के दौरान महिलाएं और पुरुष पारंपरिक नृत्य करते हैं। ढोल, मांदर और अन्य वाद्य यंत्रों की धुन पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। इन गीतों में प्रकृति, कृषि और समुदाय के जीवन का वर्णन होता है। - सामुदायिक भोज:
इस पर्व का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू सामुदायिक भोज है, जहां गांव के सभी लोग मिलकर भोजन करते हैं। स्थानीय व्यंजन, विशेषकर चावल से बने पकवान और हंडिया (स्थानीय पेय), भोज का हिस्सा होते हैं। - सांस्कृतिक कार्यक्रम:
त्योहार के दौरान नाटक, मेले और खेल-कूद जैसे आयोजन भी होते हैं। ये कार्यक्रम समाज में एकता और सामूहिकता की भावना को प्रोत्साहित करते हैं। - दीवार कला (सोहराय पेंटिंग):
आदिवासी महिलाएं अपने घरों की दीवारों पर पारंपरिक सोहराय चित्रकला बनाती हैं। ये चित्र पशु-पक्षी, प्रकृति और अन्य सांस्कृतिक प्रतीकों का चित्रण करते हैं।
सिंदरी के अकाना घूटू में पर्व की झलक
इस वर्ष 10 जनवरी को सिंदरी के अकाना घूटू में सोहराय भारत कोटा परब का आयोजन विशेष धूमधाम से किया गया। इस आयोजन में स्थानीय आदिवासी समुदायों के साथ-साथ अन्य ग्रामीण क्षेत्रों से भी लोग बड़ी संख्या में शामिल हुए। पारंपरिक नृत्य और गीतों ने पूरे माहौल को जीवंत कर दिया। सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से इस पर्व की महत्ता और परंपराओं को साझा किया गया।
सोहराय का सामाजिक और सांस्कृतिक योगदान
सोहराय परब केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर है, जो आदिवासी समाज को अपनी संस्कृति और परंपराओं से जोड़े रखता है। यह पर्व सामाजिक एकता, सामूहिकता और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का माध्यम है। आधुनिकता के प्रभाव के बावजूद, इस तरह के पारंपरिक पर्व ग्रामीण समाज को अपनी जड़ों से जुड़े रहने में सहायता करते हैं।
कार्यक्रम में मुख्य रूप से ये लोग थे उपस्थित
आकनाघुटू बस्ती में सोहराई पर्व के मौके पर शुक्रवार को गांव के पुरुषों द्वारा ढोल नगाड़े के साथ सामूहिक संथाली नृत्य गीत का कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस अवसर पर गांव की महिलाओं और पुरुषों ने सामूहिक रूप से संथाली नृत्य गीत प्रस्तुत किया। लोग दिनभर मंदार की थाप पर नाचते-गाते रहे। नृत्य गीत का दौर देर शाम तक चलता रहा। मौके पर- नुनुलाल टुडू, डॉ. हेदलाल लाल टुडू, सुखदेव बास्की, मंगल मुर्मू, शिवलाल बास्की, देवीलाल बास्की, गोविंद सोरेन, प्रभु टुडू, संजय सोरेन, अमृतबास्की, सुरजु बास्की, महावीर बास्की, राजेंद्र टुडू, प्रभात बास्की, बिनय सोरेन, राजू टुडू, नरेश सोरेन, शिव शंकर मुर्मू, जवाहर सोरेन, अशोक बास्की, मनोज बास्की, शुभम बास्की, रवि टुडू, अभिषेक सोरेन, अनिल सोरेन उपस्थित थे।
- मुनिया
- सनौती
- ललिता
- पार्वती देवी
- प्रतिमा
- लक्ष्मी देवी
- सुमित्रा देवी
निष्कर्ष
सोहराय भारत कोटा परब झारखंड और भारत के आदिवासी समुदायों की संस्कृति और परंपरा का जीता-जागता उदाहरण है। यह पर्व न केवल कृषि और प्रकृति के प्रति आदर का प्रतीक है, बल्कि समाज में उत्साह, एकता और भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देता है। सिंदरी के अकाना घूटू में इस पर्व का आयोजन समाज और संस्कृति के प्रति लोगों की गहरी आस्था को दर्शाता है।
यह पर्व हमें यह सिखाता है कि प्रकृति और कृषि का सम्मान करना न केवल हमारी जिम्मेदारी है, बल्कि यह हमारी जीवनशैली और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा भी है।
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