4 जून को झारखंड बंद का ऐलान, आदिवासी संगठनों ने सरकार पर लगाए गंभीर आरोप
Jharkhand Bandh 4 June 2025: राजधानी रांची स्थित सिरमटोली सरना स्थल के मुख्य द्वार पर रैंप निर्माण और आदिवासी अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ आदिवासी संगठनों ने 4 जून 2025 को झारखंड बंद का आह्वान किया है। इस संबंध में नगड़ा टोली सरना भवन में एक अहम बैठक का आयोजन किया गया, जिसमें कई प्रमुख आदिवासी नेता और संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हुए।
बैठक में पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव और देवकुमार धान रहे मौजूद
बैठक का आयोजन “केंद्रीय सरना स्थल सिरमटोली बचाओ मोर्चा” और “आदिवासी बचाओ मोर्चा” के संयुक्त बैनर तले किया गया। इसमें पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव, देवकुमार धान और अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लेते हुए सरकार पर आदिवासी संस्कृति, भूमि और अधिकारों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया।
सिरमटोली रैंप विवाद बना आंदोलन का केंद्र
आदिवासी संगठनों का कहना है कि सिरमटोली सरना स्थल के मुख्य द्वार पर बन रहे रैंप से न केवल धार्मिक स्थल की गरिमा को ठेस पहुंच रही है, बल्कि यह परंपराओं के विरुद्ध भी है। संगठनों का यह भी आरोप है कि सरकार राज्य भर में आदिवासी धार्मिक स्थलों जैसे मारंग बुरू, पारसनाथ, लुगूबुरू, मुड़हर पहाड़ और दिवरी दिरी की रक्षा करने में विफल रही है।
आदिवासी मुद्दों को लेकर उभरा असंतोष
बैठक में पेसा कानून के लागू न होने, भूमि अधिग्रहण, ट्राइबल यूनिवर्सिटी हब की अनदेखी, भाषा-संस्कृति के संरक्षण की कमी, शराबबंदी में ढिलाई, और नगड़ी इलाके में जबरन भूमि कब्जे जैसे गंभीर विषयों पर चर्चा की गई। इसके अलावा धार्मिक न्यास बोर्ड और नियोजन नीति में आदिवासियों की अनदेखी का मुद्दा भी उठाया गया।
जनांदोलन की चेतावनी, शांतिपूर्ण झारखंड बंद की तैयारी
संगठनों ने स्पष्ट किया कि 4 जून को बुलाया गया Jharkhand Bandh 2025 पूरी तरह शांतिपूर्ण होगा, लेकिन यदि सरकार ने उनकी मांगों की अनदेखी की, तो आंदोलन को और व्यापक किया जाएगा। बंद के दौरान आमजन से सहयोग की अपील की गई है और प्रशासन से किसी भी प्रकार के टकराव से बचने की बात कही गई है।
निष्कर्ष
Jharkhand Bandh 4 June 2025 के जरिए आदिवासी संगठनों ने एक बार फिर अपने संवैधानिक अधिकारों, धार्मिक स्थलों की सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए आवाज बुलंद की है। यह बंद न सिर्फ सिरमटोली रैंप विरोध तक सीमित है, बल्कि यह आदिवासी अस्मिता, अधिकार और अस्तित्व की लड़ाई का प्रतीक बनता जा रहा है। अब देखना होगा कि सरकार इस आंदोलन को कितनी गंभीरता से लेती है।