Manoj Kumar Passed Away | 🎬 परिचय: देशभक्ति के परदे पर जब अभिनय ने देश से प्यार करना सिखाया
Manoj Kumar Passed Away | भारतीय सिनेमा को देशभक्ति की नई पहचान देने वाले दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार का 87 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है। ‘भारत कुमार’ के नाम से पहचाने जाने वाले मनोज कुमार का सफर सिर्फ एक कलाकार का नहीं, बल्कि एक विचारधारा का था, जिसमें राष्ट्रप्रेम, सामाजिक चेतना और आत्मबल की गूंज सुनाई देती थी।
🏥 अंतिम सांस मुंबई के अस्पताल में ली | Manoj Kumar Passed Away in Mumbai Hospital
मनोज कुमार ने कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में अपनी अंतिम सांस ली। वे पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे और अस्पताल में भर्ती थे। शुक्रवार सुबह उनका निधन हुआ, जिसके बाद पूरे देश और फिल्म इंडस्ट्री में शोक की लहर दौड़ गई।
भारत से प्रेम की अमर गाथा: फिल्मों के जरिए देशभक्ति का संदेश
मनोज कुमार ने अपने अभिनय करियर को सिर्फ ग्लैमर तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्होंने फिल्मों को एक राष्ट्रप्रेम का माध्यम बनाया।
उनकी कुछ यादगार फिल्में:
- शहीद
- उपकार
- पूरब और पश्चिम
- रोटी कपड़ा और मकान
- क्रांति
- दस नंबरी
इन फिल्मों में उन्होंने ना सिर्फ एक्टिंग की, बल्कि निर्देशन भी किया।
“जिंदगी की न टूटे लड़ी, प्यार कर ले घड़ी दो घड़ी…” जैसे गीत आज भी लोगों की जुबान पर जिंदा हैं।
🌟 सम्मान और पहचान: दादा साहेब फाल्के पुरस्कार विजेता
- 1992 में पद्मश्री
- 2015 में भारत के सर्वोच्च फिल्म सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजे गए।
ये सम्मान उनके सिनेमा के जरिए राष्ट्र सेवा को समर्पित जीवन के प्रतीक हैं।
📽 असली नाम और शुरुआत
- जन्म: 24 जुलाई 1937
- असली नाम: हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी
- सिनेमा में आने के बाद उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार रख लिया।
- देशभक्ति की फिल्मों के चलते उन्हें ‘भारत कुमार’ कहा जाने लगा।
🎤 श्रद्धांजलि: इंडस्ट्री में शोक की लहर
फिल्म निर्माता अशोक पंडित ने ट्वीट कर लिखा:
“दादा साहब फाल्के पुरस्कार विजेता, हमारी प्रेरणा और भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के शेर, मनोज कुमार जी अब नहीं रहे। यह इंडस्ट्री के लिए बहुत बड़ी क्षति है।”
सोशल मीडिया पर फैंस और सितारे उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।
🕊 एक युग का अंत, पर विरासत अमर रहेगी
मनोज कुमार भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका काम, उनकी फिल्में और उनका राष्ट्रप्रेम सदियों तक लोगों के दिलों में जिंदा रहेगा। वे उन गिने-चुने कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने सिनेमा को सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का साधन बनाया।