Moharram 2024:शहादत और शोक का महीना है मुहर्रम, इमाम हुसैन के बलिदान से दुनिया में जिंदा हो उठा इंसानियत

मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना है, जिसे मुस्लिम समुदाय में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह महीना हमें इतिहास के एक महत्वपूर्ण घटना की याद दिलाता है, जब इमाम हुसैन और उनके साथियों ने कर्बला के मैदान में अन्याय के खिलाफ अपनी जान की बाजी लगा दी थी।

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मुहर्रम का नाम सुनते ही दिल में एक गहरा दुख और शोक का एहसास होता है। यह महीना हमें उस महान बलिदान की याद दिलाता है, जो इमाम हुसैन ने मानवता और न्याय के लिए दिया था। इमाम हुसैन ने अपने परिवार और साथियों के साथ कर्बला में यजीद की सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी। यह लड़ाई सिर्फ सत्ता की नहीं थी, बल्कि यह लड़ाई सत्य और असत्य के बीच थी।

कर्बला का मैदान एक ऐसा स्थल बन गया जहाँ इंसानियत, साहस और विश्वास की उच्चतम मिसाल पेश की गई। इमाम हुसैन ने अपनी जान की परवाह किए बिना, अपने साथियों के साथ मिलकर सत्य और न्याय के लिए लड़ाई लड़ी। उनका यह बलिदान हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय के लिए कभी भी झुकना नहीं चाहिए, चाहे हालात कितने भी कठिन क्यों न हों।

मुहर्रम का महीना हमें यह भी सिखाता है कि दुख और पीड़ा का सामना कैसे किया जाए। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने अत्यंत कष्ट और भूख-प्यास की स्थिति में भी अपना धैर्य नहीं खोया। उन्होंने हमें यह सिखाया कि जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं, तब हमें अपनी आस्था और विश्वास को नहीं खोना चाहिए।

इस महीने के दौरान, मुस्लिम समुदाय में मातम मनाया जाता है। लोग इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं। मातमी जुलूस, मरसिया और नौहा के माध्यम से लोग अपने दुख और शोक को प्रकट करते हैं। मुहर्रम का संदेश हमें सिखाता है कि सत्य की राह पर चलना आसान नहीं होता, लेकिन यह राह हमें इंसानियत और न्याय की सही दिशा दिखाती है। इमाम हुसैन का बलिदान हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन में भी अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएँ और सत्य के साथ खड़े रहें।

इस मुहर्रम, हम सभी को इमाम हुसैन के बलिदान से प्रेरणा लेते हुए अपने जीवन में सत्य, न्याय और इंसानियत के मूल्यों को अपनाना चाहिए। उनके आदर्शों पर चलकर हम एक बेहतर समाज का निर्माण कर सकते हैं, जहाँ हर किसी को न्याय और सम्मान मिले।

लेखक-मुस्तकीम अंसारी

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