Rabindranath Tagore Jayanti Celebration | संगीत, नाटक और श्रद्धा के संग मनाया गया विश्वकवि का जन्मोत्सव
Rabindranath Tagore Jayanti Celebration | धनबाद के लिंडसे क्लब में सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाई गई गुरुदेव टैगोर की जयंती

Rabindranath Tagore Jayanti Celebration | लिंडसे क्लब एवं पुस्तकालय के प्रांगण में शुक्रवार को विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर की 164वीं जयंती हर्षोल्लास और सांस्कृतिक गरिमा के साथ मनाई गई। कार्यक्रम में क्लब के सदस्य, बच्चों और साहित्य प्रेमियों ने मिलकर गुरुदेव को श्रद्धांजलि अर्पित की और उनकी अमूल्य साहित्यिक व सांगीतिक विरासत को याद किया।
दीप प्रज्वलन और पुष्पांजलि से हुआ शुभारंभ
कार्यक्रम का आरंभ क्लब के अध्यक्ष अमरेन्दु सिन्हा, सचिव सलिल विश्वास, कोषाध्यक्ष मनोज मजुमदार, सांस्कृतिक सचिव डॉ. देवयानी विश्वास, सह सचिव अरुण बनर्जी, शर्मिला सिन्हा और वुलवुलि मिश्र ने दीप प्रज्वलित कर किया। इसके बाद रवींद्रनाथ टैगोर के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धापूर्वक नमन किया गया।
गुरुदेव के गीतों से गुंजायमान हुआ वातावरण
क्लब की महिलाओं और पुरुष सदस्यों ने मिलकर रवींद्र संगीत का गायन किया, जिससे पूरा परिसर गुरुदेव की भावनात्मक और दार्शनिक भावनाओं से भर गया। संगीत की मधुर लहरियों ने श्रोताओं को एक अलौकिक अनुभव दिया।
बच्चों ने किया टैगोर की कविता ‘वीरपुरुष’ पर आधारित नाटक का मंचन
कार्यक्रम में छोटे बच्चों ने गुरुदेव की प्रसिद्ध कविता “वीरपुरुष” पर आधारित एक नाट्य मंचन किया, जिसे दर्शकों ने खूब सराहा। बच्चों की प्रस्तुति ने कवि की कल्पनाशक्ति और बाल मनोविज्ञान को सुंदरता से जीवंत किया।
नटराज नृत्य-नाटिका बनी मुख्य आकर्षण
इसके बाद क्लब के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत की गई नटराज पर आधारित नृत्य-नाटिका कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रही। यह प्रस्तुति गुरुदेव की कला, साहित्य और नृत्य के प्रति दृष्टिकोण को दर्शाने वाली एक अनूठी झलक थी।
आयोजन की सफलता पर आयोजकों ने जताया आभार
कार्यक्रम की सफलता पर क्लब अध्यक्ष अमरेन्दु सिन्हा और सचिव सलिल विश्वास ने सभी महिला एवं पुरुष सदस्यों, बच्चों और आयोजकों का आभार व्यक्त करते हुए इसे गुरुदेव को सच्ची श्रद्धांजलि बताया।
निष्कर्ष
रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती बना साहित्य, संस्कृति और समर्पण का संगम
लिंडसे क्लब में आयोजित रवींद्रनाथ टैगोर की 164वीं जयंती समारोह ने यह साबित कर दिया कि गुरुदेव की कला और दर्शन आज भी समाज को प्रेरणा देने में सक्षम हैं। उनका जीवन, साहित्य और संगीत आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक बना रहेगा।