Saturday, July 27, 2024
HomeगिरिडीहGIRIDIH : जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव प्रोफेसर डॉ अली इमाम...

GIRIDIH : जनवादी लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव प्रोफेसर डॉ अली इमाम खां के गिरिडीह आगमन पर कवि गोष्ठी का किया गया आयोजन

गिरिडीह : जनवादी लेखक संघ गिरिडीह की ओर से अपने राष्ट्रीय सचिव प्रोफेसर डॉ अली इमाम खां साहब के गिरिडीह आगमन पर होटल निखर में एक कवि गोष्ठी आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता जलेस गिरिडीह के अध्यक्ष जनाब रामदेव विश्वबंधु ने की एवं संचालन जिला सचिव परवेज़ शीतल ने किया। यह एक तरह से अनौपचारिक कवि गोष्ठी थी जो बहुत जल्दी में आयोजित की गई फिर भी शहर के जाने माने कवियों की शानदार उपस्थिति सम्माननीय रही। कवि गोष्ठी में कविता पाठ की शुरुआत श्री तेजप्रताप ने की। उनकी कविता ” अगर मैं लिखूंगा तो तुम्हें लिखूंगा” को काफी पसंद किया गया। उसके बाद शिक्षाविद एवं मशहूर पत्रिका परिवर्तन के संपादक डॉ महेश सिंह ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनकी कविता ने श्रोताओं को झिंझोड़ कर रख दिया। फिर शिक्षक, प्रख्यात आलोचक डॉ शैलेन्द्र ने एक कविता सुनाई उन्होंने अपने एक जूनियर मित्र की कविता खास तौर पर सुनाई जिसे काफ़ी पसंद किया गया। फिर आई ग़ज़ल की बारी तो राष्ट्रीय स्तर पर काव्य सम्मेलनों में गिरिडीह जिले का प्रतिनिधित्व करने वाले शायर हलीम असद की ग़ज़ल को काफ़ी सराहा गया। फिर जनाब हाजी मशकूर मैकश साहब ने अपनी शानदार एवं उत्कृष्ट ग़ज़ल से एक समां बांधा। रियाज़ शम्स की ग़ज़ल का ज़िक्र नहीं हो तो बात अधूरी रह जाती है। उनकी ग़ज़ल ग़ज़ल नहीं हिंदुस्तान थी। लगभग सभी पंक्तियां याद रखने योग्य थीं। “हया को बेच मत देना द्रहम व दीनार की खातिर” जैसी खुबसूरत पंक्तियों ने श्रोताओं को आनंदोत्सव में डुबकी लगाने पर मजबूर कर दिया। परवेज़ शीतल की कविता “लहू का रंग ऐक है” भी काफ़ी सराही गई। शहर के जाने माने प्रतिष्ठित रंगकर्मी एवं कवि प्रदीप गुप्ता ने भी खूब रंग जमाया। उन्होंने अपनी कविता से धाक जमा दी। प्रख्यात आलोचक, संपादक,समीक्षक एवं जन संस्कृति मंच के राज्य सचिव प्रोफेसर डॉ बलभद्र साहब की रचनाएं यादों में संजो कर रखने योग्य थीं। उन्हें काफी सराहना मिली।जलेस के राष्ट्रीय सचिव एवं प्रख्यात आलोचक, संपादक, समीक्षक, एवं बहुभाषी विद्वान प्रोफेसर डॉ अली इमाम खां साहब ने आज की सुलगती समस्याओं पर खुल कर विस्तार से अपनी बात रखते हुए कहा कि विश्व में सभी भाषाओं में की गई बड़ी रचनाएं अधिकतर प्रतिरोध की रचनाएं होती हैं। उन्होंने साहित्यिकारों को सामाजिक सांस्कृतिक प्रतिबद्धता के प्रति जागरूक किया। उनके बाद जमशेदपुर से चल कर आए साइंस फार सोसायटी के राज्य सचिव डी एन एस आनंद साहब ने भी अपने बहुमूल्य विचार रखे। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को विज्ञान, एवं वैज्ञानिक चेतना को जागृत करने वाली रचनाएं भी लिखनी चाहिए। अंत में जलेस गिरिडीह के अध्यक्ष जनाब रामदेव विश्वबंधु ने अपने चिरपरिचित अंदाज़ में साहित्यिकारों को सामाजिक सांस्कृतिक और मानवीय सरोकारों के प्रति जागरूक किया। और कहा कि आप जैसा देखते हैं वैसा ही लिखें। यानी रचनाकारों को न्यायपूर्ण एवं ज़ुल्म के खिलाफ लिखना चाहिए।वही साहित्य टिकाऊ हो सकता जिसमें सच्चाई, ईमानदारी और इंसानियत पसंदी होंगी। इस अवसर पर मशकूर मैकश, रियाज़ अहमद शम्स, मो आलम, तेजप्रताप, महेश सिंह, शैलेन्द्र, प्रदीप कुमार गुप्ता,हलीम असद, प्रोफेसर डॉ अली इमाम खां, प्रोफेसर डॉ बलभद्र, डी एन एस आनंद, आदि मौजूद थे। धन्यवाद ज्ञापन परवेज़ शीतल ने किया।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments